Friday, November 1, 2013

हरा धनिया

हरा धनिया मसाले के रूप में व भोजन को सजाने या सुंदरता बढ़ाने के साथ ही चटनी के रूप में भी खाया जाता है। हमारे बड़े-बुजूर्ग इसके औषधिय गुणों को जानते थे इसीलिए प्राचीन समय से ही धनिए का उपयोग भारतीय भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता रहा है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं हरे धनिए के कुछ ऐसे ही औषधिय गुणों के बारे में...

- इसके एंटीसेप्टिक और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाया जाता है इसीलिए अगर चेहरे पर मुंहासे हो तो धनिए की हरी पत्तियों को पीसकर उसमें चुटकीभर हल्दी पाउडर मिलाकर लगाने से लाभ होता है। यह त्वचा की विभिन्न समस्याओं जैसे एक्जीमा, सुखापन और एलर्जी से राहत दिलवाता है।


- हरा धनिया वातनाशक होने के साथ-साथ पाचनशक्ति भी बढ़ाता है। धनिया की हरी पत्तियां पित्तनाशक होती हैं। पित्त या कफ की शिकायत होने पर दो चम्मच धनिया की हरी-पत्तियों का रस सेवन करना चाहिए।

- धनिया की पत्तियों में एंटी टय़ुमेटिक और एंटी अर्थराइटिस के गुण होते हैं। यह सूजन कम करने में बहुत मददगार होता है, इसलिए जोड़ों के दर्द में राहत देता है।

- आयरन से भरपूर होने के कारण यह एनिमिया को दूर करने में मददगार होता है। एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन ए, सी और कई मिनरलों से भरपूर धनिया कैंसर से बचाव करता है।

- हरा धनिया की चटनी बनाकर खाई जाती है क्योंकि जो इसको खाने से नींद भी अच्छी आती है। डायबिटीज से पीडि़त व्यक्ति के लिए तो यह वरदान है। यह इंसुलिन बढ़ाता है और रक्त का ग्लूकोज स्तर कम करने में मदद करता है।

Monday, October 28, 2013

दूध;पृथ्वी का अमृत

दूध;पृथ्वी का अमृत
महर्षि चरक के अनुसार -”वयः पथ्यं यथाअमृतं”
अर्थात दूध अमृत समान भोजन है |
दूध में प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट,लैक्टोज [ दुग्ध शर्करा ] खनिज लवण, वसा एवं विटामिन ए.बी. सी.डी. व् ई. विद्यमान होने के कारण यह शारीर निर्माण, संरक्षण एवं पोषण हेतु अमृत तुल्य है |
धारोष्ण दूध :-
धारोष्ण दूध का अर्थ है – स्तनों से तुरंत निकला हुआ दूध | वास्तव में धारोष्ण दूध का सेवन परम उपयोगी होता है क्योंकि सामान्यतः वायु, पृथ्वी, अग्नि, आकाश के स्पर्श या फिर थोड़ी -थोड़ी देर में पीने से दूध का अधिकांश गुण नष्ट हो जाता है |
नियम तो यह है कि दूध पिलाने एवं पीने वाले के शरीर का तापमान समान होना चाहिए | छोटे बच्चों के लिए माँ का दूध इसीलिए सर्वोत्तम आहार कहा गया है क्योंकि बच्चे दूध को माँ के स्तन में मुंह लगाकर उसमें बिना हवा लगे प्राकृतिक रूप से ग्रहण करते हैं |
दुग्ध कल्प :-
प्राकृतिक चिकित्सा में अधिकांशतः देशी गाय जो शुद्ध प्राकृतिक आहार करती हो उसके दूध से “कल्प” कराया जाता है | ह्रदय से सम्बंधित कुछ रोगों को छोडकर कोई भी रोग ऐसा नहीं है जो “दुग्ध कल्प” से न मिट सके, परन्तु यह कल्प किसा प्राकृतिक चिकित्सालय में रहकर चिकित्सक की देखरेख में ही करना उचित है | इस लेख में ‘दुग्ध चिकित्सा’ के अंतर्गत गाय के दूध,घी,दही के कुछ अनुभूत घरेलु प्रयोग दिए जा रहे हैं |
पीलिया :-
चालीस ग्राम गाय के दही में दस ग्राम हल्दी का चूर्ण मिलाकर प्रातः खाली पेट एक सप्ताह तक सेवन करें
पेचिश:-
25 मि.ली. गाय के ताजे दूध को गुनगुना करने के बाद लगभग 10 ग्राम शहद मिलाकर रखें | तत्पश्चात एक कटोरी में एक चौथाई नींबू का रस निकल कर रखें |अब इस कटोरी में दूध को डालकर जल्दी से पी लें ताकि दूध नींबू रस के कारण पेट में पहुँचते-पहुँचते फट जाये | प्रातः सांय दोनों समय इसे प्रयोग करें | कुछ ही दिनों में पेचिश जड़ से समाप्त हो जाएगी |
बबासीर :-
पांच ग्राम गाय के घी में दो ग्राम जायफल घिसकर मिला लें | इस मिश्रण को बबासीर के मस्सों पर लगाने से उनका दर्द समाप्त हो जाता है |
पचास ग्राम गाय के मक्खन में दस ग्राम बारीक़ पिसा हुआ सेंधा नमक मिलाएं | इस मलहम को बबासीर के मस्सों पर प्रातः सांय शौच के उपरांत लगाने से मस्से नष्ट हो जाते हैं |
बीस ग्राम मक्खन के साथ चालीस ग्राम काले तिल का चूर्ण मिलाकर प्रातः खाली पेट सेवन करने से 21 दिन में बबासीर के मस्से नष्ट हो जायेंगे |
खट्टी छाछ के साथ मसूर की दाल का पानी मिलाकर पीने से बबासीर का रक्तस्राव बंद हो जाता है |
कब्ज :-
गाय का ताजा मट्ठा 250 मी.ली. के साथ 5 ग्राम अजवाईन का चूर्ण मिलाकर प्रातः खाली पेट पीने से कब्ज दूर हो जाता है |
तीन दिन का रखा हुआ 250 मी.ली खट्टा मट्ठा प्रातः खाली पेट लेने से कब्ज दूर हो जाता है |
250 मी.ली गाय के दूध में चार अंजीर एवं आठ मुनक्के डालकर उबालें | एक उफान आने के बाद उस दूध को धीरे-धीरे पियें | दूध में पड़े अंजीर एवं मुनक्के को चबा-चबाकर खाएं | कब्ज दूर होने के साथ ही आँतों को भी बल मिलेगा एवं शरीर की जीवनी शक्ति भी बढ़ेगी |
मुंह के छाले :-
रात को सोते समय छालों पर दूध की मलाई लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं |
प्रातः खाली पेट गाय के दही के साथ पका हुआ चित्तीदार केला खाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं |
बालों के पोषण हेतु :-
गाय के दही को तांबे के बर्तन में डालकर उसे तब तक घोटें जब तक दही में हरापन न आ जाये | अब इस दही को सिर पर लेप करने के पश्चात् तीस मिनट बाद सिर को धोएं | साबुन का प्रयोग न करें | इससे बालों के रोग दूर होंगे एवं गंजेपन में भी लाभ होगा |
एक दिन पुराने [बासी] मट्ठे से बाल धोने से बालों का झड़ना बंद हो जायेगा |
एग्जिमा :-
एक सूती कपड़े की पट्टी को दो-तीन तह करके गाय के कच्चे दूध में भिगोने के पश्चात् उसे एग्जिमायुक्त स्थान पर दस मिनट तक रखें लगभग एक सप्ताह में एग्जिमा की खुजली समाप्त हो जाएगी | खुजली समाप्त होने के बाद एग्जिमा पर गाय का मक्खन मल कर लगाने से कुछ दिनों में एग्जिमा समाप्त हो जाता है |
चेहरे की सुन्दरता हेतु :-
10 ग्राम मसूर की दाल, 10 ग्राम हल्दी और 10 ग्राम बेसन को रात में 60 मि.ली. कच्चे दूध में भिगो दें | प्रातः काल इन सब को पीसकर उबटन की भांति लगाने के पश्चात स्नान करें | इस प्रयोग से मुंहासे, चेचक के दाग, स्त्रियों के चेहरे के अनावश्यक बाल,झाँई आदि नष्ट हो जाते हैं |
ऊपर दिए गये सभी प्रयोग लाभदायक हैं जिन्हें व्यक्ति घर में आसानी से कर सकता है , परन्तु यदि इन प्रयोगों को करने के साथ -साथ प्राकृतिक चिकित्सा की मिटटी,पानी,धूप,हवा एवं आकाश तत्व द्वारा विकसित वैज्ञानिक उपचार विधियों के माध्यम से शरीर का शोधन कर विकार [विष] मुक्त कर लिया जा
ये

 

Saturday, October 26, 2013

उच्च रक्तचाप की बीमारी ठीक करने के लिए घर में उपलब्ध कुछ आयुर्वेदिक दबाईया

उच्च रक्तचाप की बीमारी ठीक करने के लिए घर में उपलब्ध कुछ आयुर्वेदिक दबाईया है जो आप ले सकते है । जैसे एक बहुत अछि दावा आप के घर में है वो है दालचीनी जो मसाले के रूप में उपयोग होता है वो आप पत्थर में पिस कर पावडर बनाके आधा चम्मच रोज सुबह खाली पेट गरम पानी के साथ खाइए ; अगर थोडा खर्च कर सकते है तो दालचीनी को शहद के साथ लीजिये (आधा चम्मच शहद आधा चम्मच दालचीनी) गरम पानी के साथ, ये हाई BP के लिए बहुत अछि दावा है । और एक अछि दावा है जो आप ले सकते है पर दोनों में से कोई एक । दूसरी दावा है मेथी दाना, मेथी दाना आधा चम्मच लीजिये एक ग्लास गरम पानी में और रात को भिगो दीजिये, रात भर पड़ा रहने दीजिये पानी में और सुबह उठ कर पानी को पि लीजिये और मेथी दाने को चबा के खा लीजिये । ये बहुत जल्दी आपकी हाई BP कम कर देगा, देड से दो महीने में एकदम स्वाभाविक कर देगा ।

और एक तीसरी दावा है हाई BP के लिए वो है अर्जुन की छाल । अर्जुन एक वृक्ष होती है उसकी छाल को धुप में सुखा कर पत्थर में पिस के इसका पावडर बना लीजिये । आधा चम्मच पावडर, आधा ग्लास गरम पानी में मिलाकर उबाल ले, और खूब उबालने के बाद इसको चाय की तरह पि ले । ये हाई BP को ठीक करेगा, कोलेस्ट्रोल को ठीक करेगा, ट्राईग्लिसाराईड को ठीक करेगा, मोटापा कम करता है , हार्ट में अर्टेरिस में अगर कोई ब्लोकेज है तो वो ब्लोकेज को भी निकाल देता है ये अर्जुन की छाल । डॉक्टर अक्सर ये कहते है न की दिल कमजोर है आपका; अगर दिल कमजोर है तो आप जरुर अर्जुन की छाल लीजिये हरदिन , दिल बहुत मजबूत हो जायेगा आपका; आपका ESR ठीक होगा, ejection fraction भी ठीक हो जायेगा; बहुत अछि दावा है ये अर्जुन की छाल ।

और एक अछि दावा है हमारे घर में वो है लौकी का रस । एक कप लौकी का रस रोज पीना सबेरे खाली पेट नास्ता करने से एक घंटे पहले ; और इस लौकी की रस में पांच धनिया पत्ता, पांच पुदीना पत्ता, पांच तुलसी पत्ता मिलाके, तिन चार कलि मिर्च पिस के ये सब डाल के पीना .. ये बहुत अच्छा आपके BP ठीक करेगा और ये ह्रदय को भी बहुत व्यवस्थित कर देता है , कोलेस्ट्रोल को ठीक रखेगा, डाईबेटिस में भी काम आता है ।

और एक मुफ्त की दावा है , बेल पत्र की पत्ते - ये उच्च रक्तचाप में बहुत काम आते है । पांच बेल पत्र ले कर पत्थर में पिस कर उसकी चटनी बनाइये अब इस चटनी को एक ग्लास पानी में डाल कर खूब गरम कर लीजिये , इतना गरम करिए के पानी आधा हो जाये , फिर उसको ठंडा करके पि लीजिये । ये सबसे जल्दी उच्च रक्तचाप को ठीक करता है और ये बेलपत्र आपके सुगर को भी सामान्य कर देगा । जिनको उच्च रक्तचाप और सुगर दोनों है उनके लिए बेल पत्र सबसे अछि दावा है ।

और एक मुफ्त की दावा है हाई BP के लिए - देशी गाय की मूत्र पीये आधा कप रोज सुबह खाली पेट ये बहुत जल्दी हाई BP को ठीक कर देता है । और ये गोमूत्र बहुत अद्भूत है , ये हाई BP को भी ठीक करता है और लो BP को भी ठीक कर देता है - दोनों में काम आता है और येही गोमूत्र डाईबेटिस को भी ठीक कर देता है , Arthritis , Gout (गठिया) दोनों ठीक होते है । अगर आप गोमूत्र लगातार पि रहे है तो दमा भी ठीक होता है अस्थमा भी ठीक होता है, Tuberculosis भी ठीक हो जाती है । इसमें दो सावधानिया ध्यान रखने की है के गाय सुद्धरूप से देशी हो और वो गर्भावस्था में न हो ।

निम्न रक्तचाप की बीमारी के लिए दावा : निम्न रक्तचाप की बीमारी के लिए सबसे अछि दावा है गुड । ये गुड पानी में मिलाके, नमक डालके, नीबू का रस मिलाके पि लो । एक ग्लास पानी में 25 ग्राम गुड, थोडा नमक नीबू का रस मिलाके दिन में दो तिन बार पिने से लो BP सबसे जल्दी ठीक होगा ।
और एक अछि दावा है ..अगर आपके पास थोड़े पैसे है तो रोज अनार का रस पियो नमक डालकर इससे बहुत जल्दी लो BP ठीक हो जाती है , गन्ने का रस पीये नमक डालकर ये भी लो BP ठीक कर देता है, संतरे का रस नमक डाल के पियो ये भी लो BP ठीक कर देता है , अनन्नास का रस पीये नमक डाल कर ये भी लो BP ठीक कर देता है ।
लो BP के लिए और एक बढ़िया दावा है मिसरी और मखन मिलाके खाओ - ये लो BP की सबसे अछि दावा है ।
लो BP के लिए और एक बढ़िया दावा है दूध में घी मिलाके पियो , एक ग्लास देशी गाय का दूध और एक चम्मच देशी गाय की घी मिलाके रातको पिने से लो BP बहुत अछे से ठीक होगा ।
और एक अछि दावा है लो BP की और सबसे सस्ता भी वो है नमक का पानी पियो दिन में दो तिन बार , जो गरीब लोग है ये उनके लिए सबसे अच्छा है ।

Thursday, October 24, 2013

गुड के औषधीय गुण

गुड़ गन्ने से तैयार एक शुद्ध, अपरिष्कृत पूरी चीनी है। यह खनिज और विटामिन है जो मूल रूप से गन्ने के रस में ही मौजूद हैं। यह प्राकृतिक होता है। पर लिए ज़रूरी है की देशी गुड लिया जाए , जिसके रंग साफ़ करने में सोडा या अन्य केमिकल ना हो। यह थोड़े गहरे रंग का होगा।इसे चीनी का शुद्धतम रूप माना जाता है। गुड़ का उपयोग मूलतः दक्षिण एशिया मे किया जाता है। भारत के ग्रामीण इलाकों मे गुड़ का उपयोग चीनी के स्थान पर किया जाता है। गुड़ लोहतत्व का एक प्रमुख स्रोत है और रक्ताल्पता (एनीमिया) के शिकार व्यक्ति को चीनी के स्थान पर इसके सेवन की सलाह दी जाती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार गुड़ का उपभोग गले और फेफड़ों के संक्रमण के उपचार में लाभदायक होता है।
- देशी गुड़ प्राकृतिक रुप से तैयार किया जाता है तथा कोई रसायन इसके प्रसंस्करण के लिए उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे इसे अपने मूल गुण को नहीं खोना पड़ता है, इसलिए यह लवण जैसे महत्वपूर्ण खनिज से युक्त होता है।
- गुड़ सुक्रोज और ग्लूकोज जो शरीर के स्वस्थ संचालन के लिए आवश्यक खनिज और विटामिन का एक अच्छा स्रोत है।
- गुड़ मैग्नीशियम का भी एक अच्छा स्रोत है जिससे मांसपेशियों, नसों और रक्त वाहिकाओं को थकान से राहत मिलती है।
- गुड़ सोडियम की कम मात्रा के साथ-साथ पोटेशियम का भी एक अच्छा स्रोत है, इससे रक्तचाप को नियंत्रित बनाए रखने में मदद मिलती है।
- भोजन के बाद थोडा सा गुड खा ले ; सारा भोजन अच्छे से और जल्दी पच जाएगा।
- गुड़ रक्तहीनता से पीड़ित लोगों के लिए बहुत अच्छा है, क्योंकि यह लोहे का एक अच्छा स्रोत है यह शरीर में हीमोग्लोबिन स्तर को बढाने में मदद करता है।
- यह सेलेनियम के साथ एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है।
- गुड़ में मध्यम मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस और जस्ता होता है जो बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है।
- यह रक्त की शुद्धि में भी मदद करता है, पित्त की आमवाती वेदनाओं और विकारों को रोकने के साथ साथ गुड़ पीलिया के इलाज में भी मदद करता है।
- गुड़ शरीर को विषाक्त पदार्थों से छुटकारा पाने में मदद करता है। सर्दियों में, यह शरीर के तापमान को विनियमित करने में मदद करता है।
- यह खांसी, दमा, अपच, माइग्रेन, थकान व इसी तरह की अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से निपटने में मदद करता है। - यह संकट के दौरान तुरन्त ऊर्जा देता है।
- लड़कियों के मासिक धर्म को नियमित करने यह मददगार होता है।
- गुड़ गले और फेफड़ों के संक्रमण के इलाज में फायदेमंद होता है।
- यह व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने में सहायक होता है।
- गुड़ शरीर में जल के अवधारण को कम करके शरीर के वजन को नियंत्रित करता है।
- उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त गुड़ उच्च स्तरीय वायु प्रदूषण में रहने वाले लोगों को इससे लड़ने में मदद करता है, संक्षेप में कहें, तो गुड़ एक खाद्य पदार्थ कम, औषधि ज्यादा है।

Wednesday, October 23, 2013

वृक्कों (गुर्दों) में पथरी-Renal (Kidney) Stone

वृक्कों गुर्दों में पथरी होने का प्रारंभ में रोगी को कुछ पता नहीं चलता है, लेकिन जब वृक्कों से निकलकर पथरी मूत्रनली में पहुंच जाती है तो तीव्र शूल की उत्पत्ति करती है। पथरी के कारण तीव्र शूल से रोगी तड़प उठता है।

उत्पत्ति :
भोजन में कैल्शियम, फोस्फोरस और ऑक्जालिकल अम्ल की मात्रा अधिक होती है तो पथरी का निर्माण होने लगता है। उक्त तत्त्वों के सूक्ष्म कण मूत्र के साथ निकल नहीं पाते और वृक्कों में एकत्र होकर पथरी की उत्पत्ति करते हैं। सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी पथरी वृक्कों में तीव्र शूल की उत्पत्ति करती है। कैल्शियम, फोस्फेट, कोर्बोलिक युक्त खाद्य पदार्थों के अधिक सेवन से पथरी का अधिक निर्माण होता है।

लक्षण :
पथरी के कारण मूत्र का अवरोध होने से शूल की उत्पत्ति होती है। मूत्र रुक-रुक कर आता है और पथरी के अधिक विकसित होने पर मूत्र पूरी तरह रुक जाता है। पथरी होने पर मूत्र के साथ रक्त भी निकल आता है। रोगी को हर समय ऐसा अनुभव होता है कि अभी मूत्र आ रहा है। मूत्र त्याग की इच्छा बनी रहती है। पथरी के कारण रोगी के हाथ-पांवों में शोध के लक्षण दिखाई देते हैं। मूत्र करते समय पीड़ा होती है। कभी-कभी पीड़ा बहुत बढ़ जाती है तो रोगी पीड़ा से तड़प उठता है। रोगी कमर के दर्द से भी परेशान रहता है।

क्या खाएं?
* वृक्कों में पथरी पर नारियल का अधिक सेवन करें।
* करेले के 10 ग्राम रस में मिसरी मिलाकर पिएं।
* पालक का 100 ग्राम रस गाजर के रस के साथ पी सकते हैं।
* लाजवंती की जड़ को जल में उबालकर कवाथ बनाकर पीने से पथरी का निष्कासन हो जाता है।
* इलायची, खरबूजे के बीजों की गिरी और मिसरी सबको कूट-पीसकर जल में मिलाकर पीने से पथरी नष्ट होती है।
* आंवले का 5 ग्राम चूर्ण मूली के टुकड़ों पर डालकर खाने से वृक्कों की पथरी नष्ट होती है।
* शलजम की सब्जी का कुछ दिनों तक निरंतर सेवन करें।
* गाजर का रस पीने से पथरी खत्म होती है।
* बथुआ, चौलाई, पालक, करमकल्ला या सहिजन की सब्जी खाने से बहुत लाभ होता है।
* वृक्कों की पथरी होने पर प्रतिदिन खीरा, प्याज व चुकंदर का नीबू के रस से बना सलाद खाएं।
* गन्ने का रस पीने से पथरी नष्ट होती है।
* मूली के 25 ग्राम बीजों को जल में उबालकर, क्वाथ बनाएं। इस क्वाथ को छानकर पिएं।
* चुकंदर का सूप बनाकर पीने से पथरी रोग में लाभ होता है।
* मूली का रस सेवन करने से पथरी नष्ट होती है।
* जामुन, सेब और खरबूजे खाने से पथरी के रोगी को बहुत लाभ होता है।
नोट: पालक, टमाटर, चुकंदर, भिंडी का सेवन करने से पहले चिकित्सक से अवश्य परामर्श कर लें।

क्या न खाएं?
* वृक्कों में पथरी होने पर चावलों का सेवन न करें।
* उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रस से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
* गरिष्ठ व वातकारक खाद्य व सब्जियों का सेवन न करें।
* चाय, कॉफी व शराब का सेवन न करें।
* चइनीज व फास्ट फूड वृक्कों की विकृति में बहुत हानि पहंुचाते हैं।
* मूत्र के वेग को अधिक समय तक न रोकें।
* अधिक शारीरिक श्रम और भारी वजन उठाने के काम न करें।

Tuesday, October 22, 2013

आटा भिगोते ही तुरंत इस्तेमाल

आटा भिगोते ही तुरंत इस्तेमाल
करना चाहिए वरना उसमे ऐसे रासायनिक
बदलाव आते है जो सेहत के लिए बहुत
हानिकारक हो सकते है . ऐसा आयुर्वेद में
स्पष्ट कहा गया है . इसलिए फ्रिज
का इस्तेमाल आटा रखने के लिए ना करे . कुछ
ही दिन में ऐसी आदत बन
जायेगी की जितनी रोटियाँ लगती है
उतना ही आटा भिगोया जाए और इसमें
ज़्यादा समय भी नहीं लगता . ताज़े आते
की रोटियाँ ज़्यादा स्वादिष्ट और
पौष्टिक होती है
 .

Monday, October 21, 2013

आंवले के प्रयोग

वमन (उल्टी) : -* हिचकी तथा उल्टी में आंवले का 10-20 मिलीलीटर रस, 5-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से आराम होता है। इसे दिन में 2-3 बार लेना चाहिए। केवल इसका चूर्ण 10-50 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ भी दिया जा सकता है।

* त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) से पैदा होने वाली उल्टी में आंवला तथा अंगूर को पीसकर 40 ग्राम खांड, 40 ग्राम शहद और 150 ग्राम जल मिलाकर कपड़े से छानकर पीना चाहिए।
* आंवले के 20 ग्राम रस में एक चम्मच मधु और 10 ग्राम सफेद चंदन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से वमन (उल्टी) बंद होती है।
* आंवले के रस में पिप्पली का बारीक चूर्ण और थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आने के रोग में लाभ होता है।
* आंवला और चंदन का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 1-1 चम्मच चूर्ण दिन में 3 बार शक्कर और शहद के साथ चाटने से गर्मी की वजह से होने वाली उल्टी बंद हो जाती है।
* आंवले का फल खाने या उसके पेड़ की छाल और पत्तों के काढ़े को 40 ग्राम सुबह और शाम पीने से गर्मी की उल्टी और दस्त बंद हो जाते हैं।
* आंवले के रस में शहद और 10 ग्राम सफेद चंदन का बुरादा मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाती है।

संग्रहणी : -मेथी दाना के साथ इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर 10 से 20 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार पिलाने से संग्रहणी मिट जाती है।
"मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट या जलन होने पर) : -* आंवले की ताजी छाल के 10-20 ग्राम रस में दो ग्राम हल्दी और दस ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्रकृच्छ मिटता है।
* आंवले के 20 ग्राम रस में इलायची का चूर्ण डालकर दिन में 2-3 बार पीने से मूत्रकृच्छ मिटता है।

विरेचन (दस्त कराना) : -रक्त पित्त रोग में, विशेषकर जिन रोगियों को विरेचन कराना हो, उनके लिए आंवले के 20-40 मिलीलीटर रस में पर्याप्त मात्रा में शहद और चीनी को मिलाकर सेवन कराना चाहिए।

अर्श (बवासीर) : -* आंवलों को अच्छी तरह से पीसकर एक मिट्टी के बरतन में लेप कर देना चाहिए। फिर उस बरर्तन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में लाभ होता है।
* बवासीर के मस्सों से अधिक खून के बहने में 3 से 8 ग्राम आंवले के चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में 2-3 बार करना चाहिए।
* सूखे आंवलों का चूर्ण 20 ग्राम लेकर 250 ग्राम पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखें। दूसरे दिन सुबह उसे हाथों से मलकर छान लें तथा छने हुए पानी में 5 ग्राम चिरचिटा की जड़ का चूर्ण और 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पीयें। इसको पीने से बवासीर कुछ दिनों में ही ठीक हो जाती है और मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
* सूखे आंवले को बारीक पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम 1 चम्मच दूध या छाछ में मिलाकर पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है।
* आंवले का बारीक चूर्ण 1 चम्मच, 1 कप मट्ठे के साथ 3 बार लें।
* आंवले का चूर्ण एक चम्मच दही या मलाई के साथ दिन में तीन बार खायें।

शुक्रमेह : -धूप में सुखाए हुए गुठली रहित आंवले के 10 ग्राम चूर्ण में दुगनी मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे 250 ग्राम तक ताजे जल के साथ 15 दिन तक लगातार सेवन करने से स्वप्नदोष (नाइटफॉल), शुक्रमेह आदि रोगों में निश्चित रूप से लाभ होता है।

खूनी अतिसार (रक्तातिसार) : -यदि दस्त के साथ अधिक खून निकलता हो तो आंवले के 10-20 ग्राम रस में 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर रोगी को पिलायें और ऊपर से बकरी का दूध 100 ग्राम तक दिन में 3 बार पिलाएं।

रक्तगुल्म (खून की गांठे) : -आंवले के रस में कालीमिर्च डालकर पीने से रक्तगुल्म खत्म हो जाता है।

प्रमेह (वीर्य विकार) : -* आंवला, हरड़, बहेड़ा, नागर-मोथा, दारू-हल्दी, देवदारू इन सबको समान मात्रा में लेकर इनका काढ़ा बनाकर 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम प्रमेह के रोगी को पिला दें।
* आंवला, गिलोय, नीम की छाल, परवल की पत्ती को बराबर-बराबर 50 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा किलो पानी में रातभर भिगो दें। इसे सुबह उबालें, उबलते-उबलते जब यह चौथाई मात्रा में शेष बचे तो इसमें 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट होती है।

पित्तदोष : -आंवले का रस, शहद, गाय का घी इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर आपस में घोटकर लेने से पित्त दोष तथा रक्त विकार के कारण नेत्र रोग ठीक होते हैं|

Saturday, October 19, 2013

कुछ उपाय जो वजन घटाएं

पूरी नींद यानी पूरी सेहत

पर्याप्त नींद और तनाव का गहरा ताल्लुक है। कई शोध नींद और वजन के संबंधों के बारे में इशारा करते हैं। इनमें पाया गया है कि बहुत कम या बहुत अधिक नींद से वजन बढ़ने लगता है। अच्छी नींद लेने वाला व्यक्ति न सिर्फ तनाव मुक्त रहता है बल्कि मोटापा कम करने में भी मदद मिलती है।

वॉकिंग- उठाइए सेहत के कदम

पैदल चलने से शरीर की मांसपेशियों की अच्छी कसरत हो जाती है। कड़ी कसरत के 90 फीसदी फायदे मिल जाते हैं। अगर आप जिम नहीं जाना चाहते हैं, और भारी-भरकम वजन उठाना आपको पसंद नहीं, तो आप पैदल चलकर भी कसरत के फायदे पा सकते हैं। एक मील यानी करीब 1.6 किलोमीटर पैदल चलने से 100 कैलोरी तक बर्न होती हैं। हफ्ते में अगर तीन दिन दो-दो मील की वॉक करें तो हर तीसरे हफ्ते आधा किलो वजन कम हो सकता है।

जल है तो जीवन है

पानी हमारे शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में बहुत मददगार होता है। जिससे आपका मेटाबोलिज्म तेज हो जाता है और आपका वजन कम होने लगता है। इसलिए दिन में कम से कम 10-12 गिलास पानी जरुर पियें। कई शोधों में माना गया है कि दिन में आठ से नौ गिलास पानी से 200 से 250 कैलोरी आप बर्न कर सकते है।

चबा चबाकर खाएं

खाना धीरे-धीरे और अच्छी तरह चबाकर खाने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि खाना देर तक खाएंगे। कम खाना खा पाएंगे और इससे वजन भी नहीं बढ़ेगा। यानी बहुत देर तक लगातार खाने से आपकी भूख मर जाएगी। चबाकर खाने से खाना जल्दी पच जाता है और आपको बहुत ज्यादा देर तक भूख नहीं लगती।

फलों का रस

फलों के रस में यदि ऊपर से चीनी न मिलाई गई हो, तो वजन घटाने का यह बेहद कारगर उपाय होता है। सॉफ्ट ड्रिंक, कोल्ड ड्रिंक जैसे पेय पदार्थों से जहां वजन बढ़ता है वही दूध, पानी, नारियल पानी, जूस इत्यादि वजन कम करने में लाभकारी होते हैं।

सेब जिसने खाया, वजन घटाया

सेब में कैलोरी बहुत कम होती है। इसमें मौजूद पेक्टिन नामक फाइबर एलडीएल कोलेस्ट्रोल या संतृप्त वसा के स्तर को नियंत्रित करता है। दिन में दो बार सेब का सेवन करने वाले लोग अपना 16 प्रतिशत कोलेस्ट्रोल कम कर सकते हैं जो वजन घटाने में सहायक होता है।

टमाटर के गुण

टमाटर! ये मीठे, रसीले और स्वादिष्ट होते हैं। हर कोई जानता है, कि ये आप के लिए अच्छे होते हैं।
क्या हर किसी को विशेष रूप से पता है, कि टमाटर एक स्वस्थ भोजन क्यों है? इनमें विटामिन सी होता है? इनमें कैलोरी कम होती हैं, लेकिन इतना सब कुछ नहीं है! लाल, पके, कच्चे टमाटर (एक कप या 150 ग्राम) को परोसना विटामिन ए, सी,के, फोलेट और पोटेशियम का एक अच्छा स्रोत है।

टमाटर में संतृप्त वसा, कोलेस्ट्रॉल, कैलोरी और सोडियम स्वाभाविक रूप से कम होता है। टमाटर थियमिन, नियासिन, विटामिन बी -6, मैग्नीशियम, फास्फोरस और तांबा, भी प्रदान करता है, जो सभी अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं। उन सबके ऊपर एक चम्मच टमाटर आपको देगा 2 ग्राम फाइबर, जो दिन भर में जितना फाइबर चाहिये उसका 7 प्रतिशत होगा। जो टमाटर में अपेक्षाकृत उच्च पानी भी होता है, जो उन्हें गरिष्ठ भोजन बनाता है।

सामान्यत: टमाटर सहित अधिक सब्जियां और फल खाने से उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, स्ट्रोक, और हृदय रोग से सुरक्षा मिलती है। आइये देखें, कि टमाटर को एक उत्कृष्ट स्वस्थ विकल्प कौन बनाता है।

स्वस्थ त्वचा टमाटर आपकी त्वचा बहुत अच्छी कर देता है। भी गाजर और शकरकंद में भी पाया जाने वाला बीटा कैरोटीन, सूर्य की क्षति से त्वचा की रक्षा करने में मदद करता है। टमाटर का लाइकोपीन पराबैंगनी प्रकाश क्षति से भी त्वचा को कम संवेदनशील बनाता है, जो लाइनों और झुर्रियों का एक प्रमुख कारण होता है।

मजबूत हड्डियां टमाटर हड्डियों को मजबूत बनाता है।टमाटर में विटामिन के और कैल्शियम दोनों ही हड्डियों को मजबूत बनाने और मरम्मत के लिए बहुत अच्छे होते हैं। देखा गया है, कि लाइकोपीन हड्डियों को सुधारता भी है, जो ऑस्टियोपोरोसिस से लड़ने के लिए बहुत बढ़िया तरीका है।

कैंसर से लड़ना-
टमाटर प्राकृतिक रूप से कैंसर से लड़ता है। प्रोस्टेट, गर्भाशय ग्रीवा, मुंह, ग्रसनी, गला, भोजन-नलिका, पेट, मलाशय, गुदा संबंधी, प्रोस्टेट और डिम्बग्रंथि के कैंसर सहित कई तरह के कैंसर के खतरे को कम कर सकता है। टमाटर के एंटीऑक्सीडेंट (विटामिन ए और सी) फ्री रैडिकल्स से लड़ते हैं

रक्त शर्करा-
टमाटर आपकी रक्त शर्करा को संतुलित रख सकता है। टमाटर, क्रोमियम का एक बहुत अच्छा स्रोत हैं, जो रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद करता है।

दृष्टि-
टमाटर आपकी दृष्टि में सुधार कर सकता है। टमाटर जो विटामिन ए प्रदान करता है, वो दृष्टि में सुधार और रतौंधी को रोकने में मदद कर सकता है। हाल के शोध से पता चला है कि, टमाटर लेने से धब्बेदार अध: विकृति, एक गंभीर और अपरिवर्तनीय आंख की स्थिति को कम करने में मदद मिल सकती है।

पुराना दर्द-
टमाटर पुराने दर्द को कम कर सकता है। अगर आप उन लाखों लोगों में से एक हैं, जिनको हल्का और मध्यम पुराना दर्द रहता है (गठिया या पीठ दर्द ), तो टमाटर दर्द को खत्म कर सकता है। टमाटर में उच्च बायोफ्लेवोनाइड और कैरोटीन होता है, जो प्रज्वलनरोधी कारक के रूप में जाना जाता है।

वजन घटाना -
टमाटर आपको आपका वजन कम करने में मदद कर सकता है। अगर आप एक समझदार आहार और व्यायाम की योजना पर हैं, तो अपने रोजमर्रा के भोजन में बहुत सारा टमाटर शामिल करें। ये एक अच्छा नाश्ता बनाएंगे और सलाद, कैसरोल, सैंडविच और अन्य भोजन को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं। क्योंकि टमाटर में ढेर सारा पानी और फाइबर होता है, इसीलिये वजन नियंत्रण करने वाले इसे 'फिलिंग फूड' कहते हैं, वह खाना जो जल्दी पेट भरते हैं, वो भी बिना कैलोरी या फैट बढ़ाये।

Saturday, October 12, 2013

नींबू के औषधीय गुण और घरेलू नुस्खें

नींबू विटामिन- सी का महत्वपूर्ण स्रोत है। वैसे तो सभी प्रकार के नींबू गुणों से भरपूर होते हैं किन्तु कागजी नींबू सबसे अच्छा माना जाता है। प्रस्तुत है नींबू के औषधीय गुण और घरेलू नुस्खें। आप भी इन्हें आजमाइए।
1) बाल गिरने, बालों के सफेद होने पर, सिर में रूसी व जुएं होने पर नींबू के रस में आंवले का चूर्ण मिलाकर सिर धोने से फायदा होता है।
2) चावल बनाते समय नींबू के रस की कुछ बूंदे डाल देने से चावल एक दूसरे से जुड़ते नहीं हैं और खिले-खिले तैयार होते हैं।
3) मुंहासे दूर करने के लिये चौथाई नींबू का रस निचोड़ कर उसमें थोड़ी से मलाई मिलाकर इसे एक महीने तक चेहरे पर लगाते रहने से चेहरे पर निखार आ जाता है तथा मुंहासे दूर होते हैं।
4) नींबू के रस में काली मिर्च, धनिया और भुना हुआ जीरा मिलाकर सेवन करने से पेट का विकार दूर होता है।
5) नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर लगाने से खुजली में आराम मिलता है।
6) सब्जी, दाल, सलाद आदि में नींबू के रस की बूंदे मिला देने से उनका स्वाद बढ़ जाता है।

नींबू में कई औषधीय गुण भी होते हैं। लेकिन, इन तमाम खूबियों के साथ ही नींबू में एक सबसे बड़ा गुण होता है – वजन को नियंत्रित करना।

** मोटापा घटाने के लिए नींबू व शहद पानी में नियमित रूप से लेने पर महीने भर में ही आप फर्क महसूस करने लगेंगे।

** नींबू विटामिन सी से भरपूर होता है और यह आहार शरीर का मैटाबॉलिज्म बढ़ाता है और वजन कम करता है। रोज सुबह खाली पेट गरम पानी, नींबू और शहद पीने से मोटापा कम होता है

Friday, October 11, 2013

बहेड़ा के फायेदे

परिचय :बहेड़ा के पेड़ बहुत ऊंचे, फैले हुए और लंबे होते हैं। इसके पेड़ 18 से 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं जिसकी छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है। इसके पेड़ पहाडों और ऊंची भूमि में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी छाया स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है। इसके पत्ते बरगद के पत्तों के समान होते हैं तथा पेड़ लगभग सभी प्रदेशों में पाये जाते हैं। इसके पत्ते लगभग 10 सेंटीमीटर से लेकर 20 सेंटीमीटर तक लम्बे तथा और 6 सेंटीमीटर से लेकर 9 सेंटीमीटर तक चौडे़ होते हैं। इसका फल अण्डे के आकार का गोल और लम्बाई में 3 सेमी तक होता है, जिसे बहेड़ा के नाम से जाना जाता है। इसके अंदर एक मींगी निकलती है, जो मीठी होती है। औषधि के रूप में अधिकतर इसके फल के छिलके का उपयोग किया जाता है।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

हिन्दी बहेड़ा
संस्कृत विभीतक
अंग्रेजी बेलेरिक मिरोबोलम
मराठी बहेड़ा
गुजराती बहेड़ां
बंगाली बहेड़े
कर्नाटकी तारीकायी
मलयालम तान्नि
तमिल अक्कनडं
तेलगू बल्ला
फारसी वलैले
लैटिन टर्मिनेलिया बेलेरिका

रंग : इसका रंग भूरा पीलापन लिए होता है।

स्वाद : इसका स्वाद मीठा होता है।

स्वरूप : बहेड़े का पेड़ जंगलों और पहाड़ों पर होता है। इसके पत्ते बरगद के पत्तों के समान होते हैं। इसके फूल बहुत ही छोटे-छोटे होते हैं। इसके फल वरना के गुच्छों के फल के समान गुच्छों में लगते हैं। बहेड़े की छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।

स्वभाव : बहेड़ा शीतल होता है।

हानिकारक : बहेड़े फल की मींगी का अधिक मात्रा में उपयोग करने से शरीर में विषैला प्रभाव होता है, जिससे गुदा प्रभावित होता है। इसके अधिक सेवन से नशा भी पैदा होता है।

दोषों को दूर करने वाला : शहद, बहेड़ा के दोषों को दूर करता है।

तुलना : आंवला और काली हरड़ से बहेड़ा की तुलना की जा सकती है।

मात्रा : बहेड़ा के सेवन की मात्रा 3 ग्राम से 6 ग्राम तक होनी चाहिए।

गुण : बहेड़ा कब्ज को दूर करने वाला होता है। यह मेदा (आमाशय) को शक्तिशाली बनाता है, भूख को बढ़ाता है, वायु रोगों को दस्तों की सहायता से दूर करता है, पित्त के दोषों को भी दूर करता है, सिर दर्द को दूर करता है, बवासीर को खत्म करता है, आंखों व दिमाग को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाता है, यह कफ को खत्म करता है तथा बालों की सफेदी को मिटता है। बहेड़ा-कफ तथा पित्त को नाश करता है तथा बालों को सुन्दर बनाता है। यह स्वर भंग (गला बैठना) को ठीक करता है। यह नशा, खून की खराबी और पेट के कीड़ों को नष्ट करता है तथा क्षय रोग (टी.बी) तथा कुष्ठ (कोढ़, सफेद दाग) में भी बहुत लाभदायक होता है।

बहेड़े की मींगी : बहेड़े की मींगी प्यास को मिटाती है। यह उल्टी को रोकती है, कफ को शांत करती है तथा वायु दोषों को दूर करती है। यह हल्की, कषैली और नशीली होती है। आंवला की मींगी के गुण भी इसी के समान होता है। इसका सुरमा आंखों के फूले को दूर करता है।

आयुर्वेदिक मतानुसार : बहेड़ा रस में मधुर, कषैला, गुण में हल्का, खुश्क, प्रकृति में गर्म, विपाक में मधुर, त्रिदोषनाशक, उत्तेजक, धातुवर्द्धक, पोषक, रक्तस्तम्भक, दर्द को नष्ट करने वाला तथा आंखों के लिए गुणकारी होता है। यह कब्ज, पेट के कीड़े, सांस, खांसी, बवासीर, अपच, गले के रोग, कुष्ठ, स्वर भेद, आमवात, त्वचा के रोग, कामशक्ति की कमी, बालों के रोग, जुकाम तथा हाथ-पैरों की जलन में लाभकारी होती है।

वैज्ञानिक मतानुसार : बहेड़ा की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता कि इसके फल में 17 प्रतिशत टैनिन, 25 प्रतिशत मींगी में हलके पीले रंग का तेल, सैपोनिन और राल पाए जाते हैं।

विभिन्न रोंगों का बहेड़ा से उपचार :

1 हाथ-पैर की जलन में :- बहेड़े की मींगी (बीज) पानी के साथ पीसकर हाथों और पैरों में लगाने से जलन में आराम मिलता है।

2 जलन :- बहेडे़ के गूदे को बारीक पीसकर शरीर पर लेप करने से सभी भी प्रकार की जलन दूर हो जाती है।

"3 कफ :- *बहेड़े के पत्ते और उससे दुगुनी चीनी का काढ़ा बनाकर पीने से कफरोग दूर हो जाता है।
*बहेड़ा की छाल का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से खांसी मिट जाती है और बलगम आसानी से निकल जाता है। खांसी की गुदगुदी बंद हो जाती है।"

4 कामशक्ति बढ़ाने हेतु : - रोजाना एक बहे़ड़े का छिलका खाने से कामशक्ति तेज हो जाती है।

5 आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए :- बहेड़े का छिलका और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच सुबह-शाम गर्म पानी से लेने से दो-तीन सप्ताह में आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।

6 कब्ज :- बहेड़े के आधे पके हुए फल को पीस लेते हैं। इसे रोजाना एक-एक चम्मच की मात्रा में थोड़े से पानी से लेने से पेट की कब्ज समाप्त हो जाती है और पेट साफ हो जाता है।

"7 श्वास या दमा :- *बहेड़े और धतूरे के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते हैं इसे चिलम या हुक्के में भरकर पीने से सांस और दमा के रोग में आराम मिलता है।
*बहेड़े को थोड़े से घी से चुपड़कर पुटपाक विधि से पकाते हैं। जब वह पक जाए तब मिट्टी आदि हटाकर बहेड़ा को निकाल लें और इसका वक्कल मुंह में रखकर चूसने से खांसी, जुकाम, स्वरभंग (गला बैठना) आदि रोगों में बहुत जल्द आराम मिलता है।
*केवल बहेड़े का छिलका मुंह में रखने से भी सांस की खांसी दूर हो जाती है।
*40 ग्राम बहेड़े का छिलका, 2 ग्राम फुलाया हुआ नौसादर और 1 ग्राम सोनागेरू लें। अब बहेड़े के छिलकों को बहुत बारीक पीसकर छान लें और उसमें नौसादर व गेरू भी बहुत बारीक करके मिला देते हैं। इसे सेवन करने से सांस के रोग में बहुत लाभ मिलता है। मात्रा : उपयुर्क्त दवा को 2-3 ग्राम तक शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इससे दमा रोग ठीक हो जाता है।
*250 ग्राम बहेड़े के फल का गूदा लेकर पीसकर छान लें और फिर इसमें 10 ग्राम फूलाया हुआ नौसादर और 5 ग्राम असली सोनागेरू लेकर पीसकर मिला दें। अब इस तैयार सामग्री को 3 ग्राम रोजाना सुबह व शाम को शहद में मिलाकर चाटने से सांस लेने में फायदा मिलता है तथा इससे धीरे-धीरे दमा भी खत्म हो जाता है।
*बहेड़े के छिलकों का चूर्ण बनाकर बकरी के दूध में पकायें और ठण्डा होने पर शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार रोगी को चटाने से सांस की बीमारी दूर हो जाती है।"

8 बालों के रोग :- 2 चम्मच बहेड़े के फल का चूर्ण लेकर एक कप पानी में रात भर भिगोकर रख देते हैं और सुबह इसे बालों की जड़ पर लगाते हैं। इसके एक घंटे के बाद बालों को धो डालते हैं। इससे बालों का गिरना बंद हो जाता है।

"9 अतिसार (दस्त):- *बहेड़ा के फलों को जलाकर उसकी राख को इकट्ठा कर लेते हैं। इसमें एक चौथाई मात्रा में कालानमक मिलाकर एक चम्मच दिन में दो-तीन बार लेने से अतिसार के रोग में लाभ मिलता है।
*2 से 5 ग्राम बहेड़े के पेड़ की छाल और 1-2 लौंग को 1 चम्मच शहद में पीसकर दिन में 3-4 बार रोगी को चटाने से दस्त बंद हो जाते हैं।
*बहेड़े को भूनकर खाने से पुराने दस्त बंद हो जाते हैं।"

10 पेचिश :- बहेड़ा के छिलके का चूर्ण एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से लेने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।

11 मुंहासे :- बीजों की गिरी का तेल रोजाना सोते समय मुंहासों पर लगाने से मुंहासे साफ हो जाते हैं और चेहरा साफ हो जाता है।

12 शक्ति बढ़ाने के लिए :- आंवले के मुरब्बे को रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से शरीर मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है।

13 बच्चों का मलावरोध (लैट्रिन रुकने) पर :- बहेडे़ का फल पत्थर से पीसकर आधा चम्मच की मात्रा में एक चम्मच दूध के साथ बच्चे को सेवन कराने से पेट साफ हो जाता है।

14 स्वित्र कोढ़ (कुष्ठ रोग) और पेचिश : - बहेड़े के पेड़ की छाल का काढ़ा स्वित्र कोढ़ और पेचिश को नष्ट करता है।

15 सांस की खांसी :- एक बहेड़ा लेकर उसके ऊपर घी चुपड़ दें और आटे में बंदकर आग पर रखकर पका लेते हैं। इसके बाद बहेड़ा को निकालकर उसकी छाल को निकाल लेते हैं। यह छाल अकेले ही बहुत ही तेज सांस और खांसी को दूर करती है। थोड़ी-थोड़ी छाल मुंह में डालकर चूसना चाहिए। इसका प्रयोग करते समय खटाई, मिर्च और तेल का परहेज करना चाहिए और मैथुन क्रिया भी नहीं करनी चाहिए।

16 कंठसर्प पर :- बहेड़े की वृक्ष की छाल को पानी में पीसकर पिलाना चाहिए। पालतू पशुओं को कंठ सर्प होने पर भी यही औषधि देनी चाहिए।

17 पालतू पशुओं के घाव में कीड़े पर जाने पर :- पशुओं के घाव में कीड़े हो जाने पर बहेड़े की छाल को मोटी रोटी के साथ खिलाना चाहिए।

18 भिलावां के कांटे से उत्पन्न छाले: - बहेड़े के गूदे को घिसकर लगाना चाहिए अथवा बहेडे़ के गूदे, मधुयष्टि, नागरमोथा और चंदन का लेप करना चाहिए।

19 बहेड़े का मुरब्बा :- बहेड़े को बर्तन में डालकर उबाल लें और उसके पानी में शक्कर डालकर गाढ़े मुरब्बे के अनुसार- चाशनी को तैयार कर ले फिर उसमें उबाले हुए बहेड़े तथा छोटी पीपल का चूर्ण डालकर किसी बर्तन में रख देते हैं। ज्यों-ज्यों वह मुरब्बा पुराना होता जाएगा, त्यों-त्यों विशेष गुण दिखलाएगा। इस मुरब्बे से खांसी तुरन्त दूर हो जाती है।

20 मूत्रकृच्छ : - बहेड़ा की फल की मींगी का चूर्ण 3-4 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) और पथरी में लाभ मिलता है।

21 पित्तज प्रमेह :- बहेड़ा, रोहिणी, कुटज, कैथ, सर्ज, छत्तीबन, कबीला के फूलों का चूर्ण बनाकर 2 से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर 1 चम्मच शहद के साथ मिलाकर पित्तज प्रमेह के रोगी को दिन में तीन बार देना चाहिए।

22 नपुंसकता :- 3 ग्राम बहेड़े के चूर्ण में 6 ग्राम गुड़ मिलाकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से नपुंसकता मिटती है और कामोत्तेजना बढ़ती है।

23 आंत उतरना :- पोतों में आंत उतरने पर बहेड़े का लेप करने से पहले ही दिन से फायदा हो जाता है।

24 बंदगांठ :- अरंडी के तेल में बहेड़े के छिलके को भूनकर तेज सिरके में पीसकर बंदगाठ पर लेप करने से 2-3 दिन में ही बंदगांठ बैठ जाती है।

"25 पित्त की सूजन : - *बहेड़े की मींगी का लेप करने से पित्त की सूजन दूर हो जाती है।
*आंख की पित्त की सूजन पर बहेड़े का लेप करने से लाभ मिलता है।"

26 ज्वर(बुखार) : - 40 से 60 मिलीलीटर बहेड़े का काढा़ सुबह-शाम पीने से पित्त, कफ, ज्वर आदि रोगों में लाभ मिलता है।

27 खुजली :- फल की मींगी का तेल खुजली के रोग में लाभकारी होता है तथा यह जलन को मिटाता है। इसकी मालिश से जलन और खुजली मिट जाती है।

28 अपच :- भोजन करने के बाद 3 से 6 ग्राम विभीतक (बहेड़ा) फल की फंकी लेने से भोजन पचाने की क्रिया तेज होती है। इससे आमाशय को ताकत मिलती है।

"29 खांसी :- *एक बहेड़े के छिलके का टुकड़ा या छीले हुए अदरक का टुकड़ा सोते समय मुंह में रखकर चूसने से बलगम आसानी से निकल जाता है। इससे सूखी खांसी और दमा का रोग भी मिट जाता है।
*3 से 6 ग्राम बहेड़े का चूर्ण सुबह-शाम गुड़ के साथ खाने से खांसी के रोग में बहुत लाभ मिलता है। बहेड़े की मज्जा अथवा छिलके को हल्का भूनकर मुंह में रखने से खांसी दूर हो जाती है।
*250 ग्राम बहेड़े की छाल, 15 ग्राम नौसादर भुना हुआ, 10 ग्राम सोना गेरू को एकसाथ पीसकर रख लेते हैं। यह 3 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर खाने से सांस का रोग ठीक हो जाता है।"

30 कनीनिका प्रदाह :- 2 भाग पीली हरड़ के बीज, 3 भाग बहेड़े के बीज और 4 आंवले की गिरी को एक साथ पीसकर और छानकर पानी में भिगोकर गोली बनाकर रख लें। जरूरत पड़ने पर इसे पानी या शहद में मिलाकर आंखों में रोजाना 2 से 3 बार लगाने से कनीनिका प्रदाह का रोग दूर हो जाता है।

31 सीने का दर्द :- सीने के दर्द में बहेड़ा जलाकर चाटना लाभकारी होता है।

32 हिचकी का रोग :- 10 ग्राम बहेड़े की छाल के चूर्ण में 10 ग्राम शहद मिलाकर रख लें। इसे थोड़ा-थोड़ा करके चाटने से हिचकी बंद हो जाती है।

33 कमजोरी :- लगभग 3 से 9 ग्राम बहेड़ा का चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से कमजोरी दूर होती है और मानसिक शक्ति बढ़ती है।

34 दिल की तेज धड़कन :- बहेड़ा के पेड़ की छाल का चूर्ण दो चुटकी रोजाना घी या गाय के दूध के साथ सेवन करने से दिल की धड़कन सामान्य हो जाती है।

35 स्वर यंत्र में जलन : - 3 ग्राम से 9 ग्राम बहेड़ा का चूर्ण सुबह और शाम शहद के साथ सेवन करने से स्वरयंत्र शोथ (गले में सूजन) और गले में जलन दूर हो जाती है। साथ ही इसके सेवन से गले के दूसरे रोग भी ठीक हो जाते हैं।

"36 गले के रोग में :- *बहेड़े का छिलका, छोटी पीपल और सेंधानमक को बराबर मात्रा में लेकर और पीसकर 6 ग्राम गाय के दही में या मट्ठे में मिलाकर खाने से स्वर-भेद (गला बैठना) दूर हो जाता है।
*बहेड़े की छाल को आग में भूनकर चूर्ण बना लें इस चूर्ण को लगभग 480 मिलीग्राम तक्र (मट्ठा) के साथ सेवन करने से स्वरभेद (गला बैठना) ठीक हो जाता है।"





Wednesday, October 9, 2013

ग्वार फली खाने के फायेदे

घर-घर में खायी जाने वाली प्रमुख सब्जियों में से ग्वार फली एक है, जिसकी खेती देश के बहुत से राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है। यह सब्जी औषधीय गुणों से भरपूर है। ग्वार फली का वानस्पतिक नाम स्यामोप्सिस टेट्रागोनोलोबा है।

ग्वार फली में कई पोष्टिक तत्व पाए जाते हैं जो स्वास्थ के लिए गुणकारी होते हैं.यह भोजन में अरुची को दूर करके भूख को बढ़ाने वाली होती है इसके सेवन से मांसपेशियां मजबूत बनाती है ग्वार फली में प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है जो सेहत के लिए फ़ायदेमंद होता है.

ग्वार फली मधुमेह के रोगी के लिए भी लाभदायक है यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करती है , पित्त को खत्म करने वाली है। ग्वारफली की सब्जी खाने से रतौंधी का रोग दूर होजाता है ग्वार फली कोपीसकर पानी के साथ मिलाकर मोच या चोट वाली जगह पर इस लेप को लगाने से आराम मिलता है।

ग्वार फली स्वाद में मीठी एवं फीकी हो सकती है। यह पाचन में भारी होती है। यह शीतल प्रकृति की और ठंडक देने वाली है अत: इसके ज्यादा सेवन से कफ की शिकायत हो सकती है परंतु ग्वार शुष्क क्षेत्रों के लिए एक पौष्टिक एवं स्वादिष्ट भोजन है।

ग्वार फली मधुमेह के रोगी के लिए भी लाभदायक है यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करती है , पित्त को खत्म करने वाली है। ग्वारफली की सब्जी खाने से रतौंधी का रोग दूर हो जाता है ग्वार फली को पीसकर पानी के साथ मिलाकर मोच या चोट वाली जगह पर इस लेप को लगाने से आराम मिलता है।

गुजरात के आदिवासी इसकी फलियों को सुखाकर चटनी तैयार करते है और मधुमेह के रोगी को 40 दिनों तक दिन में चार बार प्रतिदिन देते हैं। इनका मानना है कि ये काफी फायदेमंद है। कच्ची फलियों को चबाया जाए तो यह मधुमेह के रोगियों के लिए हितकर होता है।

आदिवासियों का मानना है कि फलियों के बीजों को रात भर पानी में डुबोकर रखा जाए और अगले दिन उसे कुचलकर सूजन, जोड़ दर्द और जलन देने वाले शारीरिक भागों पर लगाने से अतिशीघ्र आराम मिलता है।

इसकी पत्तियों का रस लगभग 4 चम्मच और 3-4 कलियों के रस में लहसुन को मिला लिया जाए तो दाद, खाज और खुजली वाले अंगों पर लगाए जाने पर आराम मिल जाता है।

कच्ची फलियों को पीसकर इसमें टमाटर और धनिया की हरी पत्तियों को डालकर चटनी तैयार की जाए और प्रतिदिन सेवन किया जाए तो आंखो की रोशनी बेहतर होती है और लगातार सेवन से कई बार चश्मा भी उतर जाता है।

. ग्वारफली की सब्जी खाने से रतौंधी का रोग दूर हो जाता है 
. पीसकर पानी में मिलाकर मोच या चोट वाली जगह पर इस लेप को लगाने से आराम मिलता है।





आइये जानते हैं तुलसी के फायदे

1. तुलसी रस से बुखार उतर जाता है। इसे पानी में मिलाकर हर दो-तीन घंटे में पीने से बुखार कम हो जाता है।

2. कई आयुर्वेदिक कफ सिरप में तुलसी का इस्तेमाल अनिवार्य है।यह टी.बी,ब्रोंकाइटिस और दमा जैसे रोंगो के लिए भी फायदेमंद है।

3. जुकाम में इसके सादे पत्ते खाने से भी फायदा होता है।

4. सांप या बिच्छु के काटने पर इसकी पत्तियों का रस,फूल और जडे विष नाशक का काम करती हैं।

5. तुलसी के तेल में विटामिन सी,कै5रोटीन,कैल्शियम और फोस्फोरस प्रचुर मात्रा में होते हैं।

6. साथ ही इसमें एंटीबैक्टेरियल,एंटीफंगल और एंटीवायरल गुण भी होते हैं।

7. यह मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है।साथ ही यह पाचन क्रिया को भी मज़बूत करती हैं।

8. तुलसी का तेल एंटी मलेरियल दवाई के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। एंटीबॉडी होने की वजह से यह हमारी इम्यूनिटी भी बढा देती है।

9. तुलसी के प्रयोग से हम स्वास्थय और सुंदरता दोनों को ही ठीक रख सकते हैं।

सावधानी :

फायदे जानने के बाद तुलसी के सेवन में अति कर देना नुकसानदायक साबित होगा। क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए दिन भर में 10-12 पत्तों का ही सेवन करना चाहिए। खासतौर पर महिलाओं के लिए भले ही तुलसी एक वरदान की तरह है लेकिन फिर भी एक दिन में पांच तुलसी के पत्ते पर्याप्त हैं। हां, इसका सेवन छाछ या दही के साथ करने से इसका प्रभाव संतुलित हो जाता है। हालांकि यह आर्थराइटिस, एलर्जी, मैलिग्नोमा, मधुमेह, वायरल आदि रोगों में फायदा पहुंचाती है। लेकिन गर्भावस्था के दौरान इसके सेवन का ध्यान रखना जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान अगर दर्द ज्यादा होता है तब तुलसी के काढे से फायदा पहुंच सकता है। इसमे तुलसी के पत्तो को रात भर पानी मे भिगो दें और सुबह उसे क्रश करके चीनी के साथ खाएं ब्रेस्ट- फीडिंग के दौरान भी तुलसी का काढा फायदेमंद होता है। इसके लिए बीस ग्राम तुलसी का रस और मकई के पत्तों रस मिलाएं, इसमें दस ग्राम अश्वगंधा रस और दस ग्राम शहद मिला कर खाएं। तुलसी बच्चेदानी को स्वास्थ रखने के लिए भी सहायक है। हां, एक बात ध्यान रहे कि आपके स्वास्थ पर तुलसी के अच्छे और बुरे दोनों प्रभाव पड सकते हैं इसलिए महिलाओं के लिए हो या बच्चों के लिए, बिना आयुर्वेदाचार्य से परामर्श लिए इसका इस्तेमाल न करे।

ध्यान रहे तुलसी पूजनीय हें , इसका अपमान / अनादर न करें !

Monday, October 7, 2013

तोरई खाने के फायेदे

तोरई एक सब्ज़ी है। इसका वानस्पतिक नाम लूफा सिलिन्ड्रिका है। तोरई एक विशेष महत्त्व वाली सब्ज़ी है। यह रोगी लोगों के लिए अत्यन्त लाभदयक होती है। इसकी खेती सम्पूर्ण भारत में की जाती है। सब्ज़ी के अलावा इसके सूखे हुए रेशे को बर्तन साफ़ करने, जूते के तलवे तथा उद्योगों में फिल्टर के रूप में प्रयोग किया जाता है।

तोरई की तरकारी बहुत हल्की मानी जाती है।

तोरई छोटी, रूखी, तेज, उष्णवीर्य और उल्टी को दूर करने वाली है।

यह कफ-पित्त के रोग को दूर करने वाली, ख़ून को साफ़ करने वाली, निःसारक, सूजन और पेट की गैस को दूर करने वाली है।

पेट की गाँठें, रस और फल में कड़ुवा, ख़ून की बीमारी, तिल्ली के बढ़ने में, खाँसी, सांस सफ़ेद दाग़ (कुष्ठ), पीलिया, बवासीर और टी.बी. को दूर करती है।

तोरई का छिलका : तोरई का ताजा छिलका त्वचा पर रगड़ने से त्वचा साफ होती है।

अतिबला (खरैटी) Country Mallow से उपचार

विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत वला, वाट्यालिका, वाट्या, वाट्यालक
हिंदी खरैटी, वरयारी, वरियार
बंगाली श्वेतवेडेला
मराठी लघुचिकणा, खिरहंटी
गुजराती खपाट बलदाना
तेलगू मुपिढी
लैटिन सिडकार्सि फोलिया
अंग्रेजी हॉर्नडिएमव्ड सिडा

गुण : चारों प्रकार की अतिबला शीतल, मधुर, बलकारक तथा चेहरे पर चमक लाने वाली, चिकनी, भारी (ग्राही), खून की खराबी तथा टी.बी. के रोगों को दूर करने में सहायक है।

विभिन्न रोगों में अतिबला (खरैटी) से उपचार:


1 पेशाब का बार-बार आना : : - खरैटी की जड़ की छाल का चूर्ण यदि चीनी के साथ सेवन करें तो पेशाब के बार-बार आने की बीमारी से छुटकारा मिलता है।

2 प्रमेह (वीर्य प्रमेह) :: - अतिबला के बारीक चूर्ण को यदि दूध और मिश्री के साथ सेवन किया जाए तो यह प्रमेह को नष्ट करती है। महावला मूत्रकृच्छू को नष्ट करती है।

3 गीली खांसी :: - अतिबला, कंटकारी, बृहती, वासा (अड़ूसा) के पत्ते और अंगूर को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। इसे 14 से 28 मिलीमीटर की मात्रा में 5 ग्राम शर्करा के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से गीली खांसी ठीक हो जाती है।

4 सीने में घाव (उर:क्षत) :: - बलामूल का चूर्ण, अश्वगंधा, शतावरी, पुनर्नवा और गंभारी का फल समान मात्रा में लेकर चूर्ण तैयार लेते हैं। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से उर:क्षत नष्ट हो जाता है।

5 मलाशय का गिरना :: - अतिबला (खिरेंटी) की पत्तियों को एरंडी के तेल में भूनकर मलाशय पर रखकर पट्टी बांध दें।

6 बांझपन दूर करना :: - अतिबला के साथ नागकेसर को पीसकर ऋतुस्नान (मासिक-धर्म) के बाद, दूध के साथ सेवन करने से लम्बी आयु वाला (दीर्घजीवी) पुत्र उत्पन्न होता है।

7 मसूढ़ों की सूजन :: - अतिबला (कंघी) के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 3 से 4 बार कुल्ला करें। रोजाना प्रयोग करने से मसूढ़ों की सूजन व मसूढ़ों का ढीलापन खत्म होता है।

8 नपुंसकता (नामर्दी) :: - अतिबला के बीज 4 से 8 ग्राम सुबह-शाम मिश्री मिले गर्म दूध के साथ खाने से नामर्दी में पूरा लाभ होता है।

9 दस्त :: - अतिबला (कंघी) के पत्तों को देशी घी में मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पित्त के उत्पन्न दस्त में लाभ होता है।

10 पेशाब के साथ खून आना :: - अतिबला की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद हो जाता है।

11 बवासीर :: - अतिबला (कंघी) के पत्तों को पानी में उबालकर उसे अच्छी तरह से मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में उचित मात्रा में ताड़ का गुड़ मिलाकर पीयें। इससे बवासीर में लाभ होता है।

12 रक्तप्रदर :: - *खिरैंटी और कुशा की जड़ के चूर्ण को चावलों के साथ पीने से रक्तप्रदर में फायदा होता है।
*खिरेंटी के जड़ का मिश्रण (कल्क) बनाकर उसे दूध में डालकर गर्म करके पीने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।
*रक्तप्रदर में अतिबला (कंघी) की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चीनी और शहद के साथ देने से लाभ मिलता है।
*अतिबला की जड़ का चूर्ण 1-3 ग्राम, 100-250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।"

13 श्वेतप्रदर : : - *अतिबला की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में दूध में मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ प्राप्त होता है।
*खिरैटी की जड़ की राख दूध के साथ देने से प्रदर में आराम मिलता है।"

14 दर्द व सूजन में :: - दर्द भरे स्थानों पर अतिबला से सेंकना फायदेमंद होता है।

15 पित्त ज्वर :: - खिरेटी की जड़ का शर्बत बनाकर पीने से बुखार की गर्मी और घबराहट दूर हो जाती है।

16 रुका हुआ मासिक-धर्म :: - खिरैटी, चीनी, मुलहठी, बड़ के अंकुर, नागकेसर, पीले फूल की कटेरी की जड़ की छाल इनको दूध में पीसकर घी और शहद मिलाकर कम से कम 15 दिनों तक लगातार पिलाना चाहिए। इससे मासिकस्राव (रजोदर्शन) आने लगता है।

17 पेट में दर्द होने पर :: - खिरैंटी, पृश्नपर्णी, कटेरी, लाख और सोंठ को मिलाकर दूध के साथ पीने से `पित्तोदर´ यानी पित्त के कारण होने वाले पेट के दर्द में लाभ होगा।

18 मूत्ररोग :: - *अतिबला के पत्तों या जड़ का काढ़ा लेने से मूत्रकृच्छ (सुजाक) रोग दूर होता है। सुबह-शाम 40 मिलीलीटर लें। इसके बीज अगर 4 से 8 ग्राम रोज लें तो लाभ होता है।
*खिरैटी के पत्ते घोटकर छान लें, इसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है।
*खिरैटी के बीजों के चूर्ण में मिश्री मिलाकर दूध के साथ लेने से मूत्रकृच्छ मिट जाती है।"

19 फोड़ा (सिर का फोड़ा) : : - अतिबला या कंघी के फूलों और पत्तों का लेप फोड़ों पर करने से लाभ मिलता है।

20 शरीर को शक्तिशाली बनाना : : - *शरीर में कम ताकत होने पर खिरैंटी के बीजों को पकाकर खाने से शरीर में ताकत बढ़ जाती है।
*खिरैंटी की जड़ की छाल को पीसकर दूध में उबालें। इसमें घी मिलाकर पीने से शरीर में शक्ति का विकास होता है।".

सत्तु का प्रयोग

सत्तु अक्सर सात प्रकार के धान्य मिलाकर बनाया जाता है .ये है मक्का , जौ , चना , अरहर ,मटर , खेसरी और कुलथा .इन्हें भुन कर पीस लिया जाता है

आयुर्वेद के अनुसार सत्तू का सेवन गले के रोग, उल्टी, आंखों के रोग, भूख, प्यास और कई अन्य रोगों में फायदेमंद होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि पाया जाता है। यह शरीर को ठंडक पहुंचाता है।

जौ का सत्तू : यह जलन को शांत करता है। इसे पानी में घोलकर पीने से शरीर में पानी की कमी दूर होती है। साथ ही बहुत ज्यादा प्यास नहीं लगती। यह थकान मिटाने और भूख बढाने का भी काम करता है। यह डायबिटीज के रोगियों के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह वजन को नियंत्रित करने में भी मददगार होता है।

चने का सत्तू : चने के सत्तू में चौथाई भाग जौ का सत्तू जरूर मिलाना चाहिए। चने के सत्तू का सेवन चीनी और घी के साथ करना फायदेमंद होता है। इसे खाने से लू नहीं लगती।

कैसे करें सेवन

सत्तू को ताजे पानी में घोलना चाहिए, गर्म पानी में नहीं।

सत्तू सेवन के बीच में पानी न पिएं।

इसे रात्रि में नहीं खाना चाहिए।

सत्तू का सेवन अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए। इसका सेवन सुबह या दोपहर एक बार ही करना सत्तू का सेवन दूध के साथ नहीं करना चाहिए।

कभी भी गाढे सत्तू का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि गाढा सत्तू पचाने में भारी होता है। पतला सत्तू आसानी से पच जाता है ।

इसे ठोस और तरल, दोनों रूपों में लिया जा सकता है।

यदि आप चने के सत्तू को पानी, काला नमक और नींबू के साथ घोलकर पीते हैं, तो यह आपके पाचनतंत्र के लिए फायदेमंद होता है .।

सत्तु के सेवन से ज़्यादा तैलीय खाना खाने से होने वाली तालीफ़ ख़त्म हो जाती है और तेल निकल जाता है .।

इसमें बहुत पोषण होता है इसलिए बढ़ते बच्चों को ज़रूर दे ।. मूंगफली के दानों के साथ यह होरिक्स को भी पीछे छोड़ देता है .।

बालों का बढ़ना चिकित्सा :

1. अमरबेल : 250 ग्राम अमरबेल को लगभग 3 लीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाये तो इसे उतार लें। सुबह इससे बालों को धोयें। इससे बाल लंबे होते हैं।

2. त्रिफला : त्रिफला के 2 से 6 ग्राम चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौह भस्म मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बालों का झड़ना बन्द हो जाता है।

3. कलौंजी : 50 ग्राम कलौंजी 1 लीटर पानी में उबाल लें। इस उबले हुए पानी से बालों को धोएं। इससे बाल 1 महीने में ही काफी लंबे हो जाते हैं।

4. नीम : नीम और बेर के पत्त
ों को पानी के साथ पीसकर सिर पर लगा लें और इसके 2-3 घण्टों के बाद बालों को धो डालें। इससे बालों का झड़ना कम हो जाता है और बाल लंबे भी होते हैं।

5. लहसुन : लहसुन का रस निकालकर सिर में लगाने से बाल उग आते हैं।

6. सीताफल : सीताफल के बीज और बेर के बीज के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीसकर बालों की जड़ों में लगाएं। ऐसा करने से बाल लंबे हो जाते हैं।

7. आम : 10 ग्राम आम की गिरी को आंवले के रस में पीसकर बालों में लगाना चाहिए। इससे बाल लंबे और घुंघराले हो जाते हैं।

8. शिकाकाई : शिकाकाई और सूखे आंवले को 25-25 ग्राम लेकर थोड़ा-सा कूटकर इसके टुकड़े कर लें। इन टुकड़ों को 500 ग्राम पानी में रात को डालकर भिगो दें। सुबह इस पानी को कपड़े के साथ मसलकर छान लें और इससे सिर की मालिश करें। 10-20 मिनट बाद नहा लें। इस तरह शिकाकाई और आंवलों के पानी से सिर को धोकर और बालों के सूखने पर नारियल का तेल लगाने से बाल लंबे, मुलायम और चमकदार बन जाते हैं। गर्मियों में यह प्रयोग सही रहता है। इससे बाल सफेद नहीं होते अगर बाल सफेद हो भी जाते हैं तो वह काले हो जाते हैं।

9. मूली : आधी से 1 मूली रोजाना दोपहर में खाना-खाने के बाद, कालीमिर्च के साथ नमक लगाकर खाने से बालों का रंग साफ होता है और बाल लंबे भी हो जाते हैं। इसका प्रयोग 3-4 महीने तक लगातार करें। 1 महीने तक इसका सेवन करने से कब्ज, अफारा और अरुचि में आराम मिलता है।
नोट : मूली जिसके लिए फयदेमन्द हो वही इसका प्रयोग कर सकते हैं।

10. आंवला : सूखे आंवले और मेंहदी को समान मात्रा में लेकर शाम को पानी में भिगो दें। प्रात: इससे बालों को धोयें। इसका प्रयोग लगातार कई दिनों तक करने से बाल मुलायम और लंबे हो जायेंगे।

11. ककड़ी : ककड़ी में सिलिकन और सल्फर अधिक मात्रा में होता है जो बालों को बढ़ाते हैं। ककड़ी के रस से बालों को धोने से तथा ककड़ी, गाजर और पालक सबको मिलाकर रस पीने से बाल बढ़ते हैं। यदि यह सब उपलब्ध न हो तो जो भी मिले उसका रस मिलाकर पी लें। इस प्रयोग से नाखून गिरना भी बन्द हो जाता है।

12. रीठा
* कपूर कचरी 100 ग्राम, नागरमोथा 100 ग्राम, कपूर तथा रीठे के फल की गिरी 40-40 ग्राम, शिकाकाई 250 ग्राम और आंवले 200 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी का चूर्ण तैयार कर लें। इस मिश्रण के 50 ग्राम चूर्ण में पानी मिलाकर लुग्दी (लेप) बनाकर बालों में लगाना चाहिए। इसके पश्चात् बालों को गरम पानी से खूब साफ कर लें। इससे सिर के अन्दर की जूं-लींकें मर जाती हैं और बाल मुलायम हो जाते हैं।
* रीठा, आंवला, सिकाकाई तीनों को मिलाने के बाद बाल धोने से बाल सिल्की, चमकदार, रूसी-रहित और घने हो जाते हैं।

13. गुड़हल : * गुड़हल के फूलों के रस को निकालकर सिर में डालने से बाल बढ़ते हैं।
* गुड़हल के पत्तों को पीसकर लुग्दी बना लें। इस लुग्दी को नहाने से 2 घंटे पहले बालों की जड़ों में मालिश करके लगायें। फिर नहायें और इसे साफ कर लें। इस प्रयोग को नियमित रूप से करते रहने से न केवल बालों को पोषण मिलेगा, बल्कि सिर में भी ठंड़क का अनुभव होगा।
* गुड़हल के पत्ते और फूलों को बराबर की मात्रा में लेकर पीसकर लेप तैयार करें। इस लेप को सोते समय बालों में लगाएं और सुबह धोयें। ऐसा कुछ दिनों तक नियमित रूप से करने से बाल स्वस्थ बने रहते हैं।
* गुड़हल के ताजे फूलों के रस में जैतून का तेल बराबर मिलाकर आग पर पकायें, जब जल का अंश उड़ जाये तो इसे शीशी में भरकर रख लें। रोजाना नहाने के बाद इसे बालों की जड़ों में मल-मलकर लगाना चाहिए। इससे बाल चमकीले होकर लंबे हो जाते हैं।


14. शांखपुष्पी : शांखपुष्पी से निर्मित तेल रोज लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।


15. भांगरा :
* बालों को छोटा करके उस स्थान पर जहां पर बाल न हों भांगरा के पत्तों के रस से मालिश करने से कुछ ही दिनों में अच्छे काले बाल निकलते हैं जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंहे हो जाते हैं। उन्हें इस प्रयोग को अवश्य ही करना चाहिए।
* त्रिफला के चूर्ण को भांगरा के रस में 3 उबाल देकर अच्छी तरह से सुखाकर खरल यानी पीसकर रख लें। इसे प्रतिदिन सुबह के समय लगभग 2 ग्राम तक सेवन करने से बालों का सफेद होना बन्द जाता है तथा इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
* आंवलों का मोटा चूर्ण करके, चीनी के मिट्टी के प्याले में रखकर ऊपर से भांगरा का इतना डाले कि आंवले उसमें डूब जाएं। फिर इसे खरलकर सुखा लेते हैं। इसी प्रकार 7 भावनाएं (उबाल) देकर सुखा लेते हैं। प्रतिदिन 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ सेवन से करने से असमय ही बालों का सफेद होना बन्द जाता है। यह आंखों की रोशनी को बढ़ाने वाला, उम्र को बढ़ाने वाला लाभकारी योग है।
* भांगरा, त्रिफला, अनन्तमूल और आम की गुठली का मिश्रण तथा 10 ग्राम मण्डूर कल्क व आधा किलो तेल को एक लीटर पानी के साथ पकायें। जब केवल तेल शेष बचे तो इसे छानकर रख लें। इसके प्रयोग से बालों के सभी प्रकार के रोग मिट जाते हैं।


16. अनन्तमूल : अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 2-2 ग्राम दिन में 3 बार पानी के साथ सेवन करने से सिर का गंजापन दूर होता है।

17. तिल :
* तिल के पौधे की जड़ और पत्तों के काढ़े से बालों को धोने से बालों पर काला रंग आने लगता है।
* काले तिलों के तेल को शुद्ध करके बालों में लगाने से बाल असमय में सफेद नहीं होते हैं। प्रतिदिन सिर में तिल के तेल की मालिश करने से बाल हमेशा मुलायम, काले और घने रहते हैं।
* तिल के फूल और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर घी और शहद में पीसकर लेप बना लें। इसे सिर पर लेप करने से गंजापन दूर होता है।
* तिल के तेल की मालिश करने के एक घंटे बाद एक तौलिया गर्म पानी में डुबोकर उसे निचोड़कर सिर पर लपेट लें तथा ठण्डा होने पर दोबारा गर्म पानी में डुबोकर निचोड़कर सिर पर लपेट लें। इस प्रकार 5 मिनट लपेटे रखें। फिर ठंड़े पानी से सिर को धो लें। ऐसा करने से बालों की रूसी दूर हो जाती है।


और अंत एक बात याद रखे !! किसी भी विदेशी कंपनी का कोई भी शैंपू का प्रयोग मत करे !!
ये clinic all clear,clinic plus, head and shoulder,dove,pantene सब विदेशी कंपनिया बनती है ! और बहुत ही खतरनाक कैमिकलों का प्रयोग करती है ! !! और हर 2 -3 महीने बाद एक ही शैंपू मे थोड़ा बदलाव कर उसका नाम बादल कर फिर बेचने लग जाती है ! 


आपको मालूम है pantene से एक लड़की के सारे बाल झड़ गये !!और वो खबर अखबार मे भी आई है !!

गला खराब है तो इन उपायों से पाएं आराम

सर्दी-जुकाम और गला खराब होने की समस्या इस मौसम में आम हैं। ठंड में गला खराब होना या गले का संक्रमण से हम आए दिन परेशान भी रहते हैं और इसे इतनी बड़ी समस्या भी नहीं मानते कि इसके लिए डॉक्टर के पास जाएं। ऐसे में दादी मां के बताए घरेलू नुस्खे आज भी घरों में गला खराब होने पर बहुत काम आते हैं। आइए जानें, किन घरेलू तरीकों से आपको गला खराब होने पर राहत मिल सकती है।

तुलसी का माउथवॉश
तुलसी प्राकृतिक एंटीसेप्टिक पौधा है जो गले के संक्रमण को खत्म करने में बेहद प्रभावी है। आप तुलसी का माउथवॉश बनाकर इससे गरारे लें। इसके लिए तुसली की पत्तियों को पानी के साथ उबाल लें और फिर ठंडा कर लें। इस मिक्सचर से माउथवॉश की तरह ही दिन में कई बार गरारे करें।

अदरक-शहद पेस्ट
गले को गर्माहट पहुंचाने के लिए और संक्रमण से दर्द में राहत पहुंचाने के लिए यह कारगर उपाय है। इसके लिए चार अदरक को पीसकर बारीक शहद ‌में मिलाएं और इसमें काली मिर्च डालकर पेस्ट बना लें। थोड़ी-थोड़ी देर पर इसे मुंह में डालें। चाहें तो अदरक की जगह लहसुन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

नमकीन पानी के गार्गल
पानी में नमक मिलाकर गुनगुना करके गरारे करने का फार्मूला बेहद प्रचलित और कारगर है। जब तक गला खराब रहे गरारे में कोताही कतई न बरतें।

लौंग, काली मिर्च और शहद का घोल
एक ग्लास पानी उबाल लें। इसमें एक चुटकी पिसी हुई लौंग, एक चुटकी काली मिर्च पाउडर और एक चम्मच शहद मिलाएं और रोज सुबह इसे पिएं। गले को आराम मिलेगा।

मेथीदाने
पानी में कुछ मेथी दाने डालकर गर्म कर लें। फिर पानी को छानकर उसके गरारे करें। इससे गले को आराम मिलेगा और संक्रमण जल्दी खत्म होगा।

तेजपत्ते की चाय
पानी में चीनी, चायपत्ती और तेजपत्ता जालकर खौलाएं और फिर छानकर चाहें तो दूध मिलाएं। तेजपत्ते की चाय पीने से गले को आराम होगा और रिकवर होने में आसानी होगी। 

अनेक रोग नाशक भी है पपीता

पपीता एक ऐसा मधुर फल है जो सस्ता एवं सर्वत्र सुलभ है। यह फल प्राय: बारहों मास पाया जाता है। किन्तु फरवरी से मार्च तथा मई से अक्तूबर के बीच का समय पपीते की ऋतु मानी जाती है। कच्चे पपीते में विटामिन ‘ए’ तथा पके पपीते में विटामिन ‘सी’ की मात्रा भरपूर पायी जाती है।

आयुर्वेद में पपीता (पपाया) को अनेक असाध्य रोगों को दूर करने वाला बताया गया है। संग्रहणी, आमाजीर्ण, मन्दाग्नि, पाण्डुरोग (पीलिया), प्लीहा वृध्दि, बन्ध्यत्व को दूर करने वाला, हृदय के लिए उपयोगी, रक्त के जमाव में उपयोगी होने के कारण पपीते का महत्व हमारे जीवन के लिए बहुत अधिक हो जाता है।

पपीते के सेवन से चेहरे पर झुर्रियां पड़ना, बालों का झड़ना, कब्ज, पेट के कीड़े, वीर्यक्षय, स्कर्वी रोग, बवासीर, चर्मरोग, उच्च रक्तचाप, अनियमित मासिक धर्म आदि अनेक बीमारियां दूर हो जाती है। पपीते में कैल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व, विटामिन- ए, बी, सी, डी प्रोटीन, कार्बोज, खनिज आदि अनेक तत्व एक साथ हो जाते हैं। पपीते का बीमारी के अनुसार प्रयोग निम्नानुसार किया जा सकता है।

१) पपीते में ‘कारपेन या कार्पेइन’ नामक एक क्षारीय तत्व होता है जो रक्त चाप को नियंत्रित करता है। इसी कारण उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) के रोगी को एक पपीता (कच्चा) नियमित रूप से खाते रहना चाहिए।

२) बवासीर एक अत्यंत ही कष्टदायक रोग है चाहे वह खूनी बवासीर हो या बादी (सूखा) बवासीर। बवासीर के रोगियों को प्रतिदिन एक पका पपीता खाते रहना चाहिए। बवासीर के मस्सों पर कच्चे पपीते के दूध को लगाते रहने से काफी फायदा होता है।

३) पपीता यकृत तथा लिवर को पुष्ट करके उसे बल प्रदान करता है। पीलिया रोग में जबकि यकृत अत्यन्त कमजोर हो जाता है, पपीते का सेवन बहुत लाभदायक होता है। पीलिया के रोगी को प्रतिदिन एक पका पपीता अवश्य खाना चाहिए। इससे तिल्ली को भी लाभ पहुंचाया है तथा पाचन शक्ति भी सुधरती है।

४) महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म एक आम शिकायत होती है। समय से पहले या समय के बाद मासिक आना, अधिक या कम स्राव का आना, दर्द के साथ मासिक का आना आदि से पीड़ित महिलाओं को ढाई सौ ग्राम पका पपीता प्रतिदिन कम से कम एक माह तक अवश्य ही सेवन करना चाहिए। इससे मासिक धर्म से संबंधित सभी परेशानियां दूर हो जाती है।

५) जिन प्रसूता को दूध कम बनता हो, उन्हें प्रतिदिन कच्चे पपीते का सेवन करना चाहिए। सब्जी के रूप में भी इसका सेवन किया जा सकता है।

६) सौंदर्य वृध्दि के लिए भी पपीते का इस्तेमाल किया जाता है। पपीते को चेहरे पर रगड़ने से चेहरे पर व्याप्त कील मुंहासे, कालिमा व मैल दूर हो जाते हैं तथा एक नया निखार आ जाता है। इसके लगाने से त्वचा कोमल व लावण्ययुक्त हो जाती है। इसके लिए हमेशा पके पपीते का ही प्रयोग करना चाहिए।

७) कब्ज सौ रोगों की जड़ है। अधिकांश लोगों को कब्ज होने की शिकायत होती है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वे रात्रि भोजन के बाद पपीते का सेवन नियमित रूप से करते रहें। इससे सुबह दस्त साफ होता है तथा कब्ज दूर हो जाता है।

८) समय से पूर्व चेहरे पर झुर्रियां आना बुढ़ापे की निशानी है। अच्छे पके हुए पपीते के गूदे को उबटन की तरह चेहरे पर लगायें। आधा घंटा लगा रहने दें। जब वह सूख जाये तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें तथा मूंगफली के तेल से हल्के हाथ से चेहरे पर मालिश करें। ऐसा कम से कम एक माह तक नियमित करें।

९) नए जूते-चप्पल पहनने पर उसकी रगड़ लगने से पैरों में छाले हो जाते हैं। यदि इन पर कच्चे पपीते का रस लगाया जाए तो वे शीघ्र ठीक हो जाते हैं।

१०) पपीता वीर्यवर्ध्दक भी है। जिन पुरुषों को वीर्य कम बनता है और वीर्य में शुक्राणु भी कम हों, उन्हें नियमित रूप से पपीते का सेवन करना चाहिए।

११) हृदय रोगियों के लिए भी पपीता काफी लाभदायक होता है। अगर वे पपीते के पत्तों का काढ़ा बनाकर नियमित रूप से एक कप की मात्रा में रोज पीते हैं तो अतिशय लाभ होता है।

गला और छाती की बीमारी का इलाज

गले में किनती भी ख़राब से ख़राब बीमारी हो, कोई भी इन्फेक्शन हो, इसकी सबसे अछि दावा है हल्दी । जैसे गले में दर्द है, खरास है , गले में खासी है, गले में कफ जमा है, गले में टोनसीलाईटिस हो गया ; ये सब बिमारिओं में आधा चम्मच कच्ची हल्दी का रस लेना और मुह खोल कर गले में डाल देना , और फिर थोड़ी देर चुप होके बैठ जाना तो ये हल्दी गले में निचे उतर जाएगी लार के साथ ; और एक खुराक में ही सब बीमारी ठीक होगी दुबारा डालने की जरुरत नही । ये छोटे बछो को तो जरुर करना ; बछो के टोन्सिल जब बहुत तकलीफ देते है न तो हम ऑपरेशन करवाके उनको कटवाते है ; वो करने की जरुरत नही है हल्दी से सब ठीक होता है ।

गले और छाती से जुडी हुई कुछ बीमारिया है जैसे खासी ; इसका एक इलाज तो कच्ची हल्दी का रस है जो गले में डालने से तुतंत ठीक हो जाती है चाहे कितनी भी जोर की खासी हो । दूसरी दावा है अदरक , ये जो अदरक है इसका छोटा सा टुकड़ा मुह में रखलो और टफी की तरह चुसो खासी तुतंत बंध हो जाएगी । अगर किसीको खासते खासते चेहरा लाल पड़ गया हो तो अदरक का रस ले लो और उसमे थोड़ा पान का रस मिला लो दोनों एक एक चम्मच और उसमे मिलाना थोड़ा सा गुड या सेहद । अब इसको थोडा गरम करके पी लेना तो जिसको खासते खासते चेहरा लाल पड़ा है उसकी खासी एक मिनट में बंध हो जाएगी । और एक अछि दावा है , अनार का रस गरम करके पियो तो खासी तुरन्त ठीक होती है । काली मिर्च है गोल मिर्च इसको मुह में रख के चबालो , पीछे से गरम पानी पी लो तो खासी बंध हो जाएगी, काली मिर्च को चुसो तो भी खासी बंध हो जाती है ।

छाती की कुछ बिमारिया जैसे दमा, अस्थमा, ब्रोंकिओल अस्थमा, इन तीनो बीमारी का सबसे अच्छा दवा है गाय मूत्र ; आधा कप गोमूत्र पियो सबेरे का ताजा ताजा तो दमा ठीक होता है, अस्थमा ठीक होता है, ब्रोंकिओल अस्थमा ठीक होता है । और गोमूत्र पिने से टीबी भी ठीक हो जाता है , लगातार पांच छे महीने पीना पड़ता है । दमा अस्थमा का और एक अछि दावा है दालचीनी, इसका पाउडर रोज सुबह आधे चम्मच खाली पेट गुड या सेहद मिलाके गरम पानी के साथ लेने से दमा अस्थमा ठीक कर देती है।

मच्छर भगाने वाली कवायल 100 सिग्रेट के बराबर नुकसान करता है तो सावधान रहिए

मच्छर भगाने वाली कवायल 100 सिग्रेट के बराबर नुकसान करता है तो सावधान रहिए Ayurveda

मच्छर भगाने का सबसे सस्ता, टिकाउ, आसान और देसी तरिका !!Ayurveda

आवश्यक सामग्री :-एक लैम्प (लालटेन), नीम का तेल,
कपूर(Camphour),मिटटी का तेल(Kerosene Oil), नारियल का तेल(Coconut Oil)

कैसे बनाये :- Ayurveda
1. नीम -केरोसीन लैम्प:- एक छोटी लैम्प में मिटटी के तेल में 30 बुँदे नीम के तेल की डालें, दो टिक्की कपूर को 20 ग्राम नारियल का तेल में पीस इसमें घोल लो
इसे जलाने पर मच्छर भाग जाते है और जब तक वो लैम्प जलती रहती है मच्छर नहीं आते वहाँ पर Ayurveda

2. दिया:- नारियल तेल में नीम के तेल को डाल कर उसका दिया जलाये इससे भी मच्छर नही आयेंगेAyurveda

सेंधा नमक कितना फायदेमंद है जानिए –

प्रसिद्धा वैज्ञानिक और समाज सेवी राजीव भाई दीक्षित का कहना है की समुद्री नमक तो अपने आप मे बहुत खतरनाक है लेकिन उसमे आयोडिन नमक मिलाकर उसे और जहरीला बना दिया जाता है ,आयोडिन की शरीर मे मे अधिक मात्र जाने से नपुंसकता जैसा गंभीर रोग हो जाना मामूली बात है

सैंधा नमक भारत में 10-15 रूपए प्रति किलो मिलता है और विदेशो में 3000 रूपए के करीब खरीद कर वहा के लोग खा रहे है

प्रकृतिक नमक हमारे शरीर के लिये बहुत जरूरी है। इसके बावजूद हम सब घटिया किस्म का आयोडिन मिला हुआ समुद्री नमक खाते है। यह शायद आश्चर्यजनक लगे , पर यह एक हकीकत है ।

नमक विशेषज्ञ एन के भारद्वाज का कहना है कि भारत मे अधिकांश लोग समुद्र से बना नमक खाते है जो की शरीर के लिए हानिकारक और जहर के समान है ।उत्तम प्रकार का नमक सेंधा नमक है, जो पहाडी नमक है ।

प्रख्यात वैद्य मुकेश पानेरी कहते है कि आयुर्वेद की बहुत सी दवाईयों मे सेंधा नमक का उपयोग होता है।आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप ,डाइबिटीज़,लकवा आदि गंभीर बीमारियो का भय रहता है । इसके विपरीत सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप पर नियन्त्रण रहता है । इसकी शुद्धता के कारण ही इसका उपयोग व्रत के भोजन मे होता है ।

ऐतिहासिक रूप से पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को 'सेंधा नमक' या 'सैन्धव नमक' कहा जाता है जिसका मतलब है 'सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ'। अक्सर यह नमक इसी खान से आया करता था। सेंधे नमक को 'लाहौरी नमक' भी कहा जाता है क्योंकि यह व्यापारिक रूप से अक्सर लाहौर से होता हुआ पूरे उत्तर भारत में बेचा जाता था।

भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था विदेशी कंपनीया भारत मे नमक के व्यापार मे आज़ादी के पहले से उतरी हुई है ,उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत की भोली भली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक खिलाया जा रहा है

सिर्फ आयोडीन के चक्कर में ज्यादा नमक खाना समझदारी नहीं है, क्योंकि आयोडीन हमें आलू, अरवी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।

यह सफ़ेद और लाल रंग मे पाया जाता है । सफ़ेद रंग वाला नमक उत्तम होता है।

यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं।

रक्त विकार आदि के रोग जिसमे नमक खाने को मना हो उसमे भी इसका उपयोग किया जा सकता है।

यह पित्त नाशक और आंखों के लिये हितकारी है ।

दस्त, कृमिजन्य रोगो और रह्युमेटिज्म मे काफ़ी उपयोगी होता है ।

भोजन सम्बन्धी कुछ नियम

१ पांच अंगो ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करे !
२. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !
३. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है !
४. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुह करके ही खाना चाहिए !
५. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
६ . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !
७. शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूट...े फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !
८. मल मूत्र का वेग होने पर , कलह के माहौल में , अधिक शोर में , पीपल , वट वृक्ष के नीचे , भोजन नहीं करना चाहिए !
९ परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
१०. खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के , उनका धन्यवाद देते हुए , तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो इस्वर से ऐसी प्राथना करके भोजन करना चाहिए !
११. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से , मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये !
१२. इर्षा , भय , क्रोध , लोभ , रोग , दीन भाव , द्वेष भाव , के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
१३. आधा खाया हुआ फल , मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
१४. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए !
१५. भोजन के समय मौन रहे !
१६. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
१७. रात्री में भरपेट न खाए !
१८. गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए !
१९. सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन , अंत में कडुवा खाना चाहिए !
२०. सबसे पहले रस दार , बीच में गरिस्थ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे !
२१. थोडा खाने वाले को --आरोग्य , आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान , और सौंदर्य प्राप्त होता है !
२२. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहा कभी न खाए !
२३. कुत्ते का छुवा , रजस्वला स्त्री का परोसा , श्राध का निकाला , बासी , मुह से फूक मरकर ठंडा किया , बाल गिरा हुवा भोजन , अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !
२४. कंजूस का , राजा का , वेश्या के हाथ का , शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए !

तुलसी के बीज का महत्त्व

जब भी तुलसी में खूब फुल यानी मंजिरी लग जाए तो उन्हें पकने पर तोड़ लेना चाहिए वरना तुलसी के झाड में चीटियाँ और कीड़ें लग जाते है और उसे समाप्त कर देते है . इन पकी हुई मंजिरियों को रख ले . इनमे से काले काले बीज अलग होंगे उसे एकत्र कर ले . यही सब्जा है . अगर आपके घर में नही है तो बाजार में पंसारी या आयुर्वैदिक दवाईयो की दुकान पर मिल जाएंगे 

शीघ्र पतन एवं वीर्य की कमी:: तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से समस्या दूर होती है

नपुंसकता:: तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में बढोतरि होती है।

मासिक धर्म में अनियमियता:: जिस दिन मासिक आए उस दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5 ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में समस्या है वो भी ठीक होती है


तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से यह जेली की तरह फुल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी के साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां दाल कर ले तो गर्मी में बहुत ठंडक देता है .इसके अलावा यह पाचन सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है .यह पित्त घटाता है ये त्रीदोषनाशक , क्षुधावर्धक है .

लहसुन के गुण

लहसुन में 6 प्रकार के रसों में से 5 रस पाये जाते हैं, केवल अम्ल नामक रस नहीं पाया जाता है।

निम्न रस - मधुर - बीजों में, लवण - नाल के अग्रभाग में, कटु - कन्दों में, तिक्त - पत्तों में, कषाय - नाल में। ""रसोनो बृंहणो वृष्य: स्गिAधोष्ण:
पाचर: सर:।"" अर्थात् लहसुन वृहण (सप्तधातुओं को बढ़ाने वाला, वृष्य - वीर्य को बढ़ाने वाला), रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, म”ाा, शुक्र स्निग्धाकारक, उष्ण प्रकृत्ति वाला, पाचक (भोजन को पचाने वाला) तथा सारक (मल को मलाशय की ओर धकेलने वाला) होता है।

""भग्नसन्धानकृत्"" - टूटी हुई हçड्डयों को जो़डने वाला, कुष्ठ के लिए हितकर, शरीर में बल, वर्ण कारक, मेधा और नेत्र शक्ति वर्धक होता है।
लहसुन सेवन योग्य व्यक्ति के लिए पथ्य - अपथ्य: पथ्य : मद्य, माँस तथा अम्ल रस युक्त भक्ष्य पदार्थ हितकर होते हैं - ""मद्यंमांसं तथाडमल्य्य हितं लसुनसेविनाम्""।

अहितकर : व्यायाम, धूप का सेवन, क्रोध करना, अधिक जल पीना, दूध एवं गु़ड का सेवन निषेध माना गया है।

रासायनिक संगठन : इसके केन्द्रों में एक बादामी रंग का उ़डनशील तेल पाया जाता है, जिसमें प्रधान रूप से Allyl disulphible and Ally l propyldisulphide और अल्प मात्रा में Polysulphides पाये जाते हैं। इन सभी की क्रिया Antibacterial होती है तथा ये एक तीव्र प्रतिजैविक Antibiotics का भी काम करते हैं।

श्वसन संस्थान पर लहसनु के उपयोग:
1. लहसुन के रस की 1 से 2 चम्मच मात्रा दिन में 2-3 बार यक्ष्मा दण्डाणुओं (T.B.) से उत्पन्न सभी विकृत्तियों जैसे - फुफ्फुस विकार, स्वर यन्त्रशोथ में लाभदायक होती है। इससे शोध कम होकर लाभ मिलता है।
2. स्वर यन्त्रशोथ में इसका टिंक्चर 1/2 - 1 ड्राप दिन में 2-3 बार देने पर लाभ होता है।
3. पुराने कफ विकार जैसे - कास, श्वास, स्वरभङग्, (Bronchitis) (Bronchiectasis) एवं श्वासकृच्छता में इसका अवलेह बनाकर उपयोग करने से लाभ होता है।
4. चूंकि लहसुन में जो उ़डनशील तैलीय पदार्थ पाया जाता है, उसका उत्सर्ग त्वचा, फुफ्फुस एवं वृक्क द्वारा होता है, इसी कारण ज्वर में उपयोगी तथा जब इसका उत्सर्ग फुफ्फुसों (श्वास मार्ग) के द्वारा होता है, तो कफ ढ़ीला होता है तथा उसके जीवाणुओं को नाश होकर कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
5.(Gangerene of lungs) तथा खण्डीय (Lobar pneumonia) में इसके टिंक्चर 2-3 बूंद से आरंभ कर धीरे-धीरे बूंदों की मात्रा बढ़ाकर 20 तक ले जाने से लाभ होता है।
6. खण्डीय फुफ्फुस पाक में इसके टिंक्चर की 30 बूंदें हर 4 घण्टे के उपरान्त जल के साथ देने से 48 घण्टे के अन्दर ही लाभ मालूम होता है तथा 5-6 दिन में ज्वर दूर हो जाता है।
7. बच्चों में कूकर खांसी, इसकी कली के रस की 1 चम्मच में सैंधव नमक डालकर देने से दूर होती है। 8. अधिक दिनों तक लगातार चलने वाली खाँसी में इसकी 3-4 कलियों (छोटे टुक़डों) को अग्नि में भूनकर, नमक लगाकर खाने से में लाभ मिलता है।
9. लहसुन की 5-7 कलियों को तेल में भूनें, जब कलियाँ काली हो जाएं, तब तेल को अग्नि पर से उतार कर जिन बच्चों या वृद्ध लोगों को जिनके Pneumonia (निमोनिया) या छाती में कफ जमा हो गया है, उनमें छाती पर लेप करके ऊपर से सेंक करने पर कफ ढीला होकर खाँसी के द्वारा बाहर निकल जाता है।

तंत्रिका संस्थान के रोगों में उपयोग:
1. (Histeria) रोग में दौरा आने पर जब रोगी बेहोश हो जाए, तब इसके रस की 1-2 बूंद नाक में डालें या सुंघाने से रोगी का संज्ञानाश होकर होश आ जाता है।
2. अपस्मार (मिर्गी) रोग में लहसुन की कलियों के चूर्ण की 1 चम्मच मात्रा को सायँकाल में गर्म पानी में भिगोकर भोजन से पूर्व और पश्चात् उपयोग कराने से लाभ होता है। यही प्रक्रिया दिन में 2 बार करनी चाहिए।
3. लहसुन वात रोग नाशक होता है अत: सभी वात विकारों साईटिका (Sciatica), कटिग्रह एवं मन्याग्रह (Lumber & Cervical spondalitis) और सभी लकवे के रोगियों में लहसुन की 7-9 कलियाँ एवं वायविडगं 3 ग्राम मात्रा को 1 गिलास दूध में, 1 गिलास पानी छानकर पिलाने से सत्वर लाभ मिलता है।
4. सभी वात विकार, कमर दर्द, गर्दन दर्द, लकवा इत्यादि अवस्थाओं में सरसों या तिल्ली के 50 ग्राम तेल में लहसुन 5 ग्राम, अजवाइन 5 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम और लौंग 5-7 नग डालकर तब तक उबालें जब ये सभी काले हो जाएं। इन्हें छानकर तेल को काँच के मर्तबान में भर लें व दर्द वाले स्थान पर मालिश करने से पी़डा दूर होती है।
5. जीर्णआमवात, सन्धिशोथ में इसे पीसकर लेप करने से शोथ और पी़डा का नाश होता है।
6. बच्चों के वात विकारों में ऊपर निर्दिष्ट तेल की मालिश विशेष लाभदायक होती है।

पाचन संस्थान में उपयोग:
1. अजीर्ण की अवस्था और जिन्हें भूख नहीं लगती है, उन्हें लहसुन कल्प का उपयोग करवाया जाता है। आरंभ में 2-3 कलियाँ खिलाएं, फिर प्रतिदिन 2-2 कलियाँ बढ़ाते हुए शरीर के शक्तिबल के अनुसार 15 कलियों तक ले जाएं। फिर पुन: घटाते हुए 2-3 कलियों तक लाकर बंद कर कर दें। इस कल्प का उपयोग करने से भूख खुलकर लगती है। आंतों में (Atonic dyspepsia) में शिथिलता दूर होकर पाचक रसों का ठीक से स्राव होकर आंतों की पुर: सरण गति बढ़ती है और रोगी का भोजन पचने लगता है।
2. आंतों के कृमि (Round Worms) में इसके रस की 20-30 बूंदें दूध के साथ देने से कृमियों की वृद्धि रूक जाती है तथा मल के साथ निकलने लगते हैं।
3. वातगुल्म, पेट के अफारे, (Duodenal ulcer) में इसे पीसकर, कर घी के साथ खिलाने से लाभ होता है।

ज्वर (Fever) रोग में उपयोग:
1. विषम ज्वर (मलेरिया) में इसे (3-5 कलियों को) पीस कर या शहद में मिलाकर कुछ मात्रा में तेल या घी साथ सुबह खाली पेट देने से प्लीहा एवं यकृत वृद्धि में लाभ मिलता है।
2. आंत्रिक ज्वर/मियादी बुखार/मोतीझरा (Typhoid) तथा तन्द्राभज्वर (Tuphues) में इसके टिंक्चर की 8-10 बूंदे शर्बत के साथ 4-6 घण्टे के अन्तराल पर देने से लाभ मिलता है। यदि रोग की प्रारंभिक अवस्था में दे दिया जाये तो ज्वर बढ़ ही नहीं पाता है।
3. इसके टिंक्चर की 5-7 बूंदें शर्बत के साथ (Intestinal antiseptic) औषध का काम करती है। ह्वदय रोग में: 1. ह्वदय रोग की अचूक दवा है।
2. लहसुन में लिपिड (Lipid) को कम करने की क्षमता या Antilipidic प्रभाव होने के कारण कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसराइडस की मात्रा को कम करता है।
3. लहसुन की 3-4 कलियों का प्रतिदिन सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल का बढ़ा हुआ लेवल कम होकर ह्वदयघात (Heart attack) की संभावनाओं को कम करता है।


1. लहसुन की तीक्ष्णता को कम करने के लिए इनकी कलियों को शाम को छाछ या दही के पानी में भिगो लें तथा सुबह सेवन करने से इसकी उग्र गन्ध एवं तीक्ष्णता दोनों नष्ट हो जाती हैं।
2. लहसुन की 5 ग्राम मात्रा तथा अर्जुन छाल 3 ग्राम मात्रा को दूध में उबाल कर (क्षीरपाक बनाकर) लेने से मायोकार्डियल इन्फेक्शन ((M.I.) ) तथा उच्चा कॉलेस्ट्रॉल (Hight Lipid Profile) दोनों से बचा जा सकता है।
3. ह्वदय रोग के कारण उदर में गैस भरना, शरीर में सूजन आने पर, लहसुन की कलियों का नियमित सेवन करने से मूत्र की प्रवृत्ति बढ़कर सूजन दूर होता है तथा वायु निकल कर ह्वदय पर दबाव भी कम होता है।
4. (Diphtheria) नामक गले के उग्र विकार में इसकी 1-1 कली को चूसने पर विकृत कला दूर होकर रोग में आराम मिलता है, बच्चों को इसके रस (आधा चम्मच) में शहद या शर्बत के साथ देना चाहिए।
5. पशुओं में होने वाले Anthrax रोग में इसे 10-15 ग्राम मात्रा में आभ्यान्तर प्रयोग तथा गले में लेप के रूप में प्रयोग करते हैं।

Note : लहसुन के कारण होने वाले उपद्रवों में हानिनिवारक औषध के रूप में मातीरा, धनियाँ एवं बादाम के तेल में उपयोग में लाते हैं।
Note : गर्भवती स्त्रयों तथा पित्त प्रकृत्ति वाले पुरूषों को लहसुन का अति सेवन निषेध माना गया है।
Photo: लहसुन -----

लहसुन में 6 प्रकार के रसों में से 5 रस पाये जाते हैं, केवल अम्ल नामक रस नहीं पाया जाता है।

निम्न रस - मधुर - बीजों में, लवण - नाल के अग्रभाग में, कटु - कन्दों में, तिक्त - पत्तों में, कषाय - नाल में। ""रसोनो बृंहणो वृष्य: स्गिAधोष्ण:
पाचर: सर:।"" अर्थात् लहसुन वृहण (सप्तधातुओं को बढ़ाने वाला, वृष्य - वीर्य को बढ़ाने वाला), रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, म”ाा, शुक्र स्निग्धाकारक, उष्ण प्रकृत्ति वाला, पाचक (भोजन को पचाने वाला) तथा सारक (मल को मलाशय की ओर धकेलने वाला) होता है।

""भग्नसन्धानकृत्"" - टूटी हुई हçड्डयों को जो़डने वाला, कुष्ठ के लिए हितकर, शरीर में बल, वर्ण कारक, मेधा और नेत्र शक्ति वर्धक होता है।
लहसुन सेवन योग्य व्यक्ति के लिए पथ्य - अपथ्य: पथ्य : मद्य, माँस तथा अम्ल रस युक्त भक्ष्य पदार्थ हितकर होते हैं - ""मद्यंमांसं तथाडमल्य्य हितं लसुनसेविनाम्""।

अहितकर : व्यायाम, धूप का सेवन, क्रोध करना, अधिक जल पीना, दूध एवं गु़ड का सेवन निषेध माना गया है।

रासायनिक संगठन : इसके केन्द्रों में एक बादामी रंग का उ़डनशील तेल पाया जाता है, जिसमें प्रधान रूप से Allyl disulphible and Allyl propyldisulphide और अल्प मात्रा में Polysulphides पाये जाते हैं। इन सभी की क्रिया Antibacterial होती है तथा ये एक तीव्र प्रतिजैविक Antibiotics का भी काम करते हैं।

श्वसन संस्थान पर लहसनु के उपयोग:
1. लहसुन के रस की 1 से 2 चम्मच मात्रा दिन में 2-3 बार यक्ष्मा दण्डाणुओं (T.B.) से उत्पन्न सभी विकृत्तियों जैसे - फुफ्फुस विकार, स्वर यन्त्रशोथ में लाभदायक होती है। इससे शोध कम होकर लाभ मिलता है।
2. स्वर यन्त्रशोथ में इसका टिंक्चर 1/2 - 1 ड्राप दिन में 2-3 बार देने पर लाभ होता है।
3. पुराने कफ विकार जैसे - कास, श्वास, स्वरभङग्, (Bronchitis) (Bronchiectasis) एवं श्वासकृच्छता में इसका अवलेह बनाकर उपयोग करने से लाभ होता है।
4. चूंकि लहसुन में जो उ़डनशील तैलीय पदार्थ पाया जाता है, उसका उत्सर्ग त्वचा, फुफ्फुस एवं वृक्क द्वारा होता है, इसी कारण ज्वर में उपयोगी तथा जब इसका उत्सर्ग फुफ्फुसों (श्वास मार्ग) के द्वारा होता है, तो कफ ढ़ीला होता है तथा उसके जीवाणुओं को नाश होकर कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
5.(Gangerene of lungs) तथा खण्डीय (Lobar pneumonia) में इसके टिंक्चर 2-3 बूंद से आरंभ कर धीरे-धीरे बूंदों की मात्रा बढ़ाकर 20 तक ले जाने से लाभ होता है।
6. खण्डीय फुफ्फुस पाक में इसके टिंक्चर की 30 बूंदें हर 4 घण्टे के उपरान्त जल के साथ देने से 48 घण्टे के अन्दर ही लाभ मालूम होता है तथा 5-6 दिन में ज्वर दूर हो जाता है।
7. बच्चों में कूकर खांसी, इसकी कली के रस की 1 चम्मच में सैंधव नमक डालकर देने से दूर होती है। 8. अधिक दिनों तक लगातार चलने वाली खाँसी में इसकी 3-4 कलियों (छोटे टुक़डों) को अग्नि में भूनकर, नमक लगाकर खाने से में लाभ मिलता है।
9. लहसुन की 5-7 कलियों को तेल में भूनें, जब कलियाँ काली हो जाएं, तब तेल को अग्नि पर से उतार कर जिन बच्चों या वृद्ध लोगों को जिनके Pneumoia (निमोनिया) या छाती में कफ जमा हो गया है, उनमें छाती पर लेप करके ऊपर से सेंक करने पर कफ ढीला होकर खाँसी के द्वारा बाहर निकल जाता है।

तंत्रिका संस्थान के रोगों में उपयोग:
1. (Histeria) रोग में दौरा आने पर जब रोगी बेहोश हो जाए, तब इसके रस की 1-2 बूंद नाक में डालें या सुंघाने से रोगी का संज्ञानाश होकर होश आ जाता है।
2. अपस्मार (मिर्गी) रोग में लहसुन की कलियों के चूर्ण की 1 चम्मच मात्रा को सायँकाल में गर्म पानी में भिगोकर भोजन से पूर्व और पश्चात् उपयोग कराने से लाभ होता है। यही प्रक्रिया दिन में 2 बार करनी चाहिए।
3. लहसुन वात रोग नाशक होता है अत: सभी वात विकारों साईटिका (Sciatica), कटिग्रह एवं मन्याग्रह (Lumber & Cirvical spondalitis) और सभी लकवे के रोगियों में लहसुन की 7-9 कलियाँ एवं वायविडगं 3 ग्राम मात्रा को 1 गिलास दूध में, 1 गिलास पानी छानकर पिलाने से सत्वर लाभ मिलता है।
4. सभी वात विकार, कमर दर्द, गर्दन दर्द, लकवा इत्यादि अवस्थाओं में सरसों या तिल्ली के 50 ग्राम तेल में लहसुन 5 ग्राम, अजवाइन 5 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम और लौंग 5-7 नग डालकर तब तक उबालें जब ये सभी काले हो जाएं। इन्हें छानकर तेल को काँच के मर्तबान में भर लें व दर्द वाले स्थान पर मालिश करने से पी़डा दूर होती है।
5. जीर्णआमवात, सन्धिशोथ में इसे पीसकर लेप करने से शोथ और पी़डा का नाश होता है।
6. बच्चों के वात विकारों में ऊपर निर्दिष्ट तेल की मालिश विशेष लाभदायक होती है।

पाचन संस्थान में उपयोग:
1. अजीर्ण की अवस्था और जिन्हें भूख नहीं लगती है, उन्हें लहसुन कल्प का उपयोग करवाया जाता है। आरंभ में 2-3 कलियाँ खिलाएं, फिर प्रतिदिन 2-2 कलियाँ बढ़ाते हुए शरीर के शक्तिबल के अनुसार 15 कलियों तक ले जाएं। फिर पुन: घटाते हुए 2-3 कलियों तक लाकर बंद कर कर दें। इस कल्प का उपयोग करने से भूख खुलकर लगती है। आंतों में (Atonic dyspepsia) में शिथिलता दूर होकर पाचक रसों का ठीक से स्राव होकर आंतों की पुर: सरण गति बढ़ती है और रोगी का भोजन पचने लगता है।
2. आंतों के कृमि (Round Worms) में इसके रस की 20-30 बूंदें दूध के साथ देने से कृमियों की वृद्धि रूक जाती है तथा मल के साथ निकलने लगते हैं।
3. वातगुल्म, पेट के अफारे, (Dwodenal ulcer) में इसे पीसकर, कर घी के साथ खिलाने से लाभ होता है।

ज्वर (Fever) रोग में उपयोग:
1. विषम ज्वर (मलेरिया) में इसे (3-5 कलियों को) पीस कर या शहद में मिलाकर कुछ मात्रा में तेल या घी साथ सुबह खाली पेट देने से प्लीहा एवं यकृत वृद्धि में लाभ मिलता है।
2. आंत्रिक ज्वर/मियादी बुखार/मोतीझरा (Typhoid) तथा तन्द्राभज्वर (Tuphues) में इसके टिंक्चर की 8-10 बूंदे शर्बत के साथ 4-6 घण्टे के अन्तराल पर देने से लाभ मिलता है। यदि रोग की प्रारंभिक अवस्था में दे दिया जाये तो ज्वर बढ़ ही नहीं पाता है।
3. इसके टिंक्चर की 5-7 बूंदें शर्बत के साथ (Intestinal antiseptic) औषध का काम करती है। ह्वदय रोग में: 1. ह्वदय रोग की अचूक दवा है।
2. लहसुन में लिपिड (Lipid) को कम करने की क्षमता या Antilipidic प्रभाव होने के कारण कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसराइडस की मात्रा को कम करता है।
3. लहसुन की 3-4 कलियों का प्रतिदिन सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल का बढ़ा हुआ लेवल कम होकर ह्वदयघात (Heartattack) की संभावनाओं को कम करता है।


1. लहसुन की तीक्ष्णता को कम करने के लिए इनकी कलियों को शाम को छाछ या दही के पानी में भिगो लें तथा सुबह सेवन करने से इसकी उग्र गन्ध एवं तीक्ष्णता दोनों नष्ट हो जाती हैं।
2. लहसुन की 5 ग्राम मात्रा तथा अर्जुन छाल 3 ग्राम मात्रा को दूध में उबाल कर (क्षीरपाक बनाकर) लेने से मायोकार्डियल इन्फेक्शन ((M.I.) ) तथा उच्चा कॉलेस्ट्रॉल (Hight Lipid Profile) दोनों से बचा जा सकता है।
3. ह्वदय रोग के कारण उदर में गैस भरना, शरीर में सूजन आने पर, लहसुन की कलियों का नियमित सेवन करने से मूत्र की प्रवृत्ति बढ़कर सूजन दूर होता है तथा वायु निकल कर ह्वदय पर दबाव भी कम होता है।
4. (Diptheria) नामक गले के उग्र विकार में इसकी 1-1 कली को चूसने पर विकृत कला दूर होकर रोग में आराम मिलता है, बच्चों को इसके रस (आधा चम्मच) में शहद या शर्बत के साथ देना चाहिए।
5. पशुओं में होने वाले Anthrax रोग में इसे 10-15 ग्राम मात्रा में आभ्यान्तर प्रयोग तथा गले में लेप के रूप में प्रयोग करते हैं।

Note : लहसुन के कारण होने वाले उपद्रवों में हानिनिवारक औषध के रूप में मातीरा, धनियाँ एवं बादाम के तेल में उपयोग में लाते हैं।
Note : गर्भवती स्त्रयों तथा पित्त प्रकृत्ति वाले पुरूषों को लहसुन का अति सेवन निषेध माना गया है।

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
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